कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“हाँ मैं, तुम बड़े दुष्ट
हो साजन! कुछ खिलाओ, कहाँ रहते हो? वहीं चलूँ।”
साजन घबराया, उसने देखा
कि रमला उठ खड़ी हुई। उसने कहा- तैरकर चलना होगा,
आगे पथ नहीं है।
वह
कूद पड़ी और राजहंसी के समान तैरने लगी। साजन क्षणभर तक उस सुन्दर सन्तरण
को देखता रहा। उसकी दृष्टि का यह पहला महोत्सव था। उसे भी तो तैरने का
विनोद था न। मन का विरोध उन लहरों के आन्दोलन से घुलने लगा, अनिच्छा होने
पर भी वह साथ देने के लिए कूद पड़ा। दोनों साथ-साथ तैर चले।
बहुत दिन बीत गये। रमला
और साजन एकत्र रहने पर भी अलग थे। रमला का सब
उत्साह उस एकान्त नीरवता में धीरे-धीरे विलीन हो चला।
वह
ऊब चली। उसकी गुफा में ढेर-के-ढेर कमलगट्टे फल पड़े रहते, उसे उन सब
पदार्थों से वितृष्णा हो चली। साजन पालतू पशु के समान अपनी स्वामिनी से
आज्ञा की अपेक्षा करता; परन्तु रमला का उत्साह तो उस बन्दीगृह से भाग जाने
के लिए उत्सुक था।
साजन ने एक दिन पूछा-
“क्या ले आऊँ?”
“कुछ नहीं।”
“कुछ नहीं? क्यों?”
“मैं अब जाऊँगी?”
“कहाँ?”
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