कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“जिधर जा सकूँगी।”
“तब यहीं क्यों नहीं रहती
हो?”- अचानक साजन ने कहा।
रमला
कुछ न बोली। उस झील पर रात आई, अपना जगमगाता चँदवा तानकर विश्राम करने
लगी। रमला अपनी गुफा में सोने चली गई और साजन अपनी गुफा के पास बैठा एकटक
रजनी का सौन्दर्य देखने लगा। आज जैसे उसे स्मृति हुई- रमला के आ जाने से
वह जिस बात को भूल गया था, उसके अन्तर की वही भावना जाग उठी। साजन पुकार
उठा-‘रानी!’ बहुत दिन के बाद उस झील की पहाडिय़ाँ प्रतिध्वनि से मुखरित हो
उठीं- ई-ई-ई।
रमला चौंक कर जाग पड़ी।
बाहर चली आई। उसने देखा,
साजन झील की ओर मुँह किये पुकार रहा है-‘रानी!’ रानी!’- उसका कण्ठ गद्गद
है। चाँदनी आज निखर पड़ी थी। रमला ने सुना। साजन के स्वर में रुदन था।
व्याकुलता थी; रमला ने उसके कन्धे पर हाथ रख दिया-साजन सिहर उठा। उसने
कहा- ”कौन, रमला!”
“रमला नहीं-रानी।”
साजन विस्मय से देखने
लगा। उसने पूछा- ”तुम रानी हो?”
“हाँ, मुझी को तो तुम
पुकारते थे न?”
“तुम्हीं ... तुम्हीं ...
हाँ, तुम्हीं को तो, मेरी प्यारी रानी!”
दोनो ने देखा, आकाश के
नक्षत्र रमला-झील में डुबकियाँ ले रहे थे, और
खिलखिला रहे थे।
कितना समय बीत गया।
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