कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“इन मन्दिर वालों ने अपनी
जूठन भी तुझे दी?”
“मैं क्यों लेती,
उन्होंने दी भी नहीं।”
“तब भी तू कहती है कि
मन्दिर में हम लोग न जायँ! जायँगे; सब अछूत जायँगे।”
“न
बेटा, किसी ने तुझको बहका दिया है। भगवान् के पवित्र मन्दिर में हम लोग आज
तक कभी नहीं गये। वहाँ जाने के लिए तपस्या करनी चाहिए।”
“हम लोग तो जायँगे।”
“ना, ऐसा कभी न होगा।”
“होगा,
फिर होगा। जाता हूँ ताड़ीखाने, वहीं पर सबकी राय से कल क्या होगा, यह
देखना।” - राधे ऐंठता हुआ चला गया। बुढिय़ा एकटक मन्दिर की ओर विचारने
लगी-
“भगवान्, क्या होनेवाला
है!”
दूसरे दिन मन्दिर के
द्वार पर भारी जमघट था। आस्तिक भक्तों का झुण्ड अपवित्रता से भगवान् की
रक्षा करने के लिए दृढ़ होकर खड़ा था। उधर सैकड़ों अछूतों के साथ राधे
मन्दिर में प्रवेश करने के लिए तत्पर था।
लट्ठ चले, सिर फूटे।
राधे आगे बढ़ ही रहा था। कुँजबिहारी ने बगल से घूमकर राधे के सिर पर करारी
चोट दी। वह लहू से लथपथ वहीं लोटने लगा। प्रवेशार्थी भागे। उनका सरदार गिर
गया था। पुलिस भी पहुँच गयी थी। राधे के अन्तरंग मित्र गिनती में 10-12
थे। वे ही रह गये।
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