कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
चन्दनपुर के जमींदार के
घर में, जो यमुना-तट पर बना हुआ है, पाईंबाग के भीतर, एक रविश में चार
कुर्सियाँ पड़ी हैं। एक पर किशोर सिंह और दो कुर्सियों पर विल्फर्ड और
एलिस बैठे हैं, तथा चौथी कुर्सी के सहारे सुकुमारी खड़ी है। किशोर सिंह
मुस्करा रहे हैं, और एलिस आश्चर्य की दृष्टि से सुकुमारी को देख रही है।
विल्फर्ड उदास हैं और
सुकुमारी मुख नीचा किये हुए है। सुकुमारी ने कनखियों
से किशोर सिंह की ओर देखकर सिर झुका लिया।
एलिस- (किशोर सिंह से)
बाबू साहब, आप इन्हें बैठने की इजाजत दें।
किशोर सिंह- मैं क्या मना
करता हूँ?
एलिस- (सुकुमारी को
देखकर) फिर वह क्यों नहीं बैठतीं?
किशोर सिंह- आप कहिये,
शायद बैठ जायँ।
विल्फर्ड- हाँ, आप क्यों
खड़ी हैं?
बेचारी सुकुमारी लज्जा से
गड़ी जाती थी।
एलिस- (सुकुमारी की ओर
देखकर) अगर आप न बैठेंगी, तो मुझे बहुत रंज होगा।
किशोर सिंह- यों न
बैठेंगी, हाथ पकड़कर बिठाइये।
एलिस
सचमुच उठी, पर सुकुमारी एक बार किशोर सिंह की ओर वक्र दृष्टि से देखकर
हँसती हुई पास की बारहदरी में भागकर चली गयी, किन्तु एलिस ने पीछा न
छोड़ा। वह भी वहाँ पहुँची, और उसे पकड़ा। सुकुमारी एलिस को देख
गिड़गिड़ाकर बोली- क्षमा कीजिये, हम लोग पति के सामने कुर्सी पर नहीं
बैठतीं, और न कुर्सी पर बैठने का अभ्यास ही है।
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