कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
एलिस चुपचाप
खड़ी रह गयी, यह सोचने लगी कि क्या सचमुच पति के सामने कुर्सी पर न बैठना
चाहिये। फिर उसने सोचा- यह बेचारी जानती ही नहीं कि कुर्सी पर बैठने में
क्या सुख है?
चन्दनपुर के जमींदार के
यहाँ आश्रय लिये हुए
योरोपियन-दम्पति सब प्रकार सुख से रहने पर भी सिपाहियों का अत्याचार सुनकर
शंकित रहते थे। दयालु किशोर सिंह यद्यपि उन्हें बहुत आश्वासन देते, तो भी
कोमल प्रकृति की सुन्दरी एलिस सदा भयभीत रहती थी।
दोनों दम्पति
कमरे में बैठे हुए यमुना का सुन्दर जल-प्रवाह देख रहे हैं। विचित्रता यह
है कि 'सिगार' न मिल सकने के कारण विल्फर्ड साहब सटक के सड़ाके लगा रहे
हैं। अभ्यास न होने के कारण सटक से उन्हें बड़ी अड़चन पड़ती थी, तिस पर
सिपाहियों के अत्याचार का ध्यान उन्हें और भी उद्विग्न किये हुए था;
क्योंकि एलिस का भय से पीला मुख उनसे देखा न जाता था।
इतने में
बाहर कोलाहल सुनाई पड़ा। एलिस के मुख से 'ओ माई गाड' (Oh My God !) निकल
पड़ा और भय से वह मूर्च्छित हो गयी। विल्फर्ड और किशोर सिंह ने एलिस को
पलंग पर लिटाया, और आप 'बाहर क्या है' सो देखने के लिये चले।
विल्फर्ड
ने अपनी राइफल हाथ में ली और साथ में जान चाहा, पर किशोर सिंह ने उन्हें
समझाकर बैठाला और आप खूँटी पर लटकती तलवार लेकर बाहर निकल गये।
किशोर
सिंह बाहर आ गये, देखा तो पाँच कोस पर जो उनका सुन्दरपुर ग्राम है, उसे
सिपाहियों ने लूट लिया और प्रजा दुखी होकर अपने जमींदार से अपनी दु:ख-गाथा
सुनाने आयी है। किशोर सिंह ने सबको आश्वासन दिया, और उनके खाने-पीने का
प्रबन्ध करने के लिए कर्मचारियों को आज्ञा देकर आप विल्फर्ड और एलिस को
देखने के लिये भीतर चले आये।
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