कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
एलिस ने आश्चर्य और
उदासी-भरी एक दृष्टि सुकुमारी पर डाली। एलिस को भोजन
कैसा लगा, सो नहीं कहा जा सकता।
भारत
में शान्ति स्थापित हो गयी है। अब विल्फर्ड और एलिस अपनी नील की कोठी पर
वापस जाने वाले हैं। चन्दनपुर में उन्हें बहुत दिन रहना पड़ा। नील-कोठी
वहाँ से दूर है।
दो घोड़े सजे-सजाये खड़े
हैं और किशोर सिंह के
आठ सशस्त्र सिपाही उनको पहुँचाने के लिए उपस्थित हैं। विल्फर्ड साहब किशोर
सिंह से बात-चीत करके छुट्टी पा चुके हैं। केवल एलिस अभी तक भीतर से नहीं
आयी। उन्हीं के आने की देर है।
विल्फर्ड और किशोर सिंह
पाईं-बाग
में टहल रहे थे। इतने में सात-आठ स्त्रियों का झुंड मकान से बाहर निकला।
हैं! यह क्या? एलिस ने अपना गाउन नहीं पहना, उसके बदले फिरोजी रंग के
रेशमी कपड़े का कामदानी लहँगा और मखमल की कंचुकी, जिसके सितारे रेशमी
ओढ़नी के ऊपर से चमक रहे हैं। हैं! यह क्या? स्वाभाविक अरुण अधरों में पान
की लाली भी है, आँखों में काजल की रेखा भी है, चोटी भी फूलों से गूँथी जा
चुकी है, और मस्तक में सुन्दर सा बाल-अरुण का बिन्दु भी तो है!
देखते ही किशोर सिंह
खिलखिलाकर हँस पड़े, और विल्फर्ड तो भौंचक्के-से रह
गये।
किशोर सिंह ने एलिस से
कहा- आपके लिये भी घोड़ा तैयार है - पर सुकुमारी ने
कहा- नहीं, इनके लिये पालकी मँगा दो।
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