कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
रामनिहाल फिर
रुक गया। श्यामा ने फिर तीखी दृष्टि से उसकी ओर देखा। रामनिहाल कहने लगा,
“तुमको भी संदेह हो रहा है। सो ठीक ही है। मुझे भी कुछ संदेह हो रहा है,
मनोरमा क्यों मुझे इस समय बुला रही है।”
अब श्यामा ने हँसकर कहा,
“तो क्या तुम समझते हो कि मनोरमा तुमको प्यार करती है और वह दुश्चरित्रा
है? छि: रामनिहाल, यह तुम क्यों सोच रहे हो? देखूँ तो, तुम्हारे हाथ में
यह कौन-सा चित्र है, क्या मनोरमा का ही?” कहते-कहते श्यामा ने रामनिहाल के
हाथ से चित्र ले लिया। उसने आश्चर्य-भरे स्वर में कहा, “अरे, यह तो मेरा
ही है? तो क्या तुम मुझसे प्रेम करने का लड़कपन करते हो? यह अच्छी फाँसी
लगी है तुमको। मनोरमा तुमको प्यार करती है और तुम मुझको। मन के विनोद के
लिए तुमने अच्छा साधन जुटाया है। तभी कायरों की तरह यहाँ से बोरिया-बँधना
लेकर भागने की तैयारी कर ली है!”
रामनिहाल हत्बुद्धि
अपराधी-सा श्यामा को देखने लगा। जैसे उसे कहीं भागने
की राह न हो। श्यामा दृढ़ स्वर में कहने लगी-
“निहाल
बाबू! प्यार करना बड़ा कठिन है। तुम इस खेल को नहीं जानते। इसके चक्कर में
पडऩा भी मत। हाँ, एक दुखिया स्त्री तुमको अपनी सहायता के लिए बुला रही है।
जाओ, उसकी सहायता करके लौट आओ। तुम्हारा सामान यहीं रहेगा। तुमको अभी यहीं
रहना होगा। समझे। अभी तुमको मेरी संरक्षता की आवश्यकता है। उठो। नहा-धो
लो। जो ट्रेन मिले, उससे पटने जाकर ब्रजकिशोर की चालाकियों से मनोरमा की
रक्षा करो। और फिर मेरे यहाँ चले आना। यह सब तुम्हारा भ्रम था। संदेह था।”
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