कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
प्रेमकुमारी हँस
पड़ी। उसने खीर दी। अमीर ने उसे मुँह से लगाया ही था कि नवागुन्तक मुसलमान
चिल्ला उठा। अमीर ने उसकी ओर अबकी बार बड़े क्रोध से देखा। शिकारी लड़के
पास आ गये थे। वे सब-के-सब अमीर की तरह लम्बी-चौड़ी हड्डियों वाले स्वस्थ,
गोरे और स्फूर्ति से भरे हुए थे। अमीर खीर मुँह में डालते हुए न जाने क्या
कह उठा और लड़के आगन्तुक को घेरकर खड़े हो गये। उससे कुछ पूछने लगे। उधर
अमीर ने अपना हाथ बढ़ाकर खीर माँगने का संकेत किया। प्रेमकुमारी हँसती
जाती थी और उसे खीर देती जाती थी। तब भी अमीर उसे तरेरते हुए अपनी आँखों
में और भी देने को कह रहा था। उसकी आँखों में से अनुनय, विनय, हठ, स्नेह
सभी तो माँग रहे थे, फिर प्रेमकुमारी सबके लिए एक-एक ग्रास क्यों न देती?
नटखट अमीर एक आँख से लडक़ों को, दूसरी आँख से प्रेमकुमारी को उलझाये हुए
खीर गटकता जाता था। उधर वह नवागन्तुक मुसलमान अपनी टूटी-फूटी पश्तो में
लड़के से ‘काफिर’ का प्रसाद खाने की अमीर की धृष्टता का विरोध कर रहा था।
वे आश्चर्य से उसकी बातें सुन रहे थे। एक ने चिल्लाकर कहा- ”अरे देखो,
अमीर तो सब खीर खा गया।”
फिर सब लड़के घूमकर अब
प्रेमकुमारी को
घेर कर खड़े हो गये। वह सबके उजले-उजले हाथों पर खीर देने लगी। आगन्तुक ने
फिर चिल्लाकर कहा- क्या तुम सब मुसलमान हो?”
लडक़ों ने एक स्वर से
कहा-”हाँ, पठान।”
“और उस काफिर की दी
हुई....?”
“यह मेरी पड़ोसिन है!” -
एक ने कहा।
“यह मेरी बहन है।” दूसरे
ने कहा।
“नन्दराम बन्दूक बहुत
अच्छी चलाता है।” - तीसरे ने कहा।
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