कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“ये लोग कभी झूठ नहीं
बोलते” - चौथे ने कहा।
“हमारे गाँव के लिए इन
लोगों ने कई लड़ाइयाँ की है।” - पाँचवें ने कहा।
“हम लोगों को घोड़े पर
चढ़ाना नन्दराम ने सिखलाया है। वह बहुत अच्छा सवार
है।” - छठे ने कहा।
“और नन्दराम ही तो हम
लोगों को गुड़ खिलाता है।” - सातवें ने कहा।
“तुम
चोर हो।” - यह कहकर लडक़ों ने अपने-अपने हाथ की खीर खा डाली और
प्रेमकुमारी हँस पड़ी। सन्ध्या उस पीपल की घनी छाया में पुञ्जीभूत हो रही
थी। पक्षियों का कोलाहल शान्त होने लगा था। प्रेमकुमारी ने सब लडक़ों से
घर चलने के लिए कहा, अमीर ने भी नवागन्तुक से कहा- ”तुझे भूख लगी हो, तो
हम लोगों के साथ चल।” किन्तु वह तो अपने हृदय के विष से छटपटा रहा था।
जिसके लिए वह हिजरत करके भारत से चला आया था, उस धर्म का मुसलमान-देश में
भी यह अपमान! वह उदास मुँह से उसी अन्धकार में कट्टर दुर्दान्त वजीरियों
के गाँवों की ओर चल पड़ा।
नन्दराम पूरा साढ़े छ:
फुट का बलिष्ठ
युवक था। उसके मस्तक में केसर का टीका न लगा रहे, तो कुलाह और सलवार में
वह सोलहों आने पठान ही जँचता। छोटी-छोटी भूरी मूँछें खड़ी रहती थीं। उसके
हाथ में कोड़ा रहना आवश्यक था। उसके मुख पर संसार की प्रसन्न आकांक्षा
हँसी बनकर खेला करती। प्रेमकुमारी उसके हृदय की प्रशान्त नीलिमा में
उज्ज्वल बृहस्पति ग्रह की तरह झलमलाया करती थी। आज वह बड़ी प्रसन्नता में
अपने घर की ओर लौट रहा था। सन्तसिंह के घोड़े अच्छे दामों में बिके थे।
उसे पुरस्कार भी अच्छा मिला था। वह स्वयं अच्छा घुड़सवार था। उसने अपना
घोड़ा भी अधिक मूल्य पाकर बेच दिया था। रुपये पास में थे। वह एक ऊँचे ऊँट
पर बैठा हुआ चला आ रहा था। उसके साथी लोग बीच की मण्डी में रुक गये थे;
किन्तु काम हो जाने पर, उसे तो प्रेमकुमारी को देखने की धुन सवार थी। ऊपर
सूर्य की किरणें झलमला रही थीं। बीहड़ पहाड़ी पथ था। कोसों तक कोई गाँव
नहीं था। उस निर्जनता में वह प्रसन्न होकर गाता आ रहा था।
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