कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
भीतर नन्दराम और प्रेमा
का स्नेहालाप बन्द हो
चुका था। दोनों तन्द्रालस हो रहे थे। सहसा गोलियों की कड़कड़ाहट सुन पड़ी।
सारे गाँव में आतंक फैल गया।
“वजीरी! वजीरी!”
उन दस घरों
में जो भी कोई अस्त्र चला सकता था, बाहर निकल पड़ा। अस्सी वजीरियों का दल
चारों ओर से गाँव को घेरे में करके भीषण गोलियों की बौछार कर रहा था।
अमीर
और नन्दराम बगल में खड़े होकर गोली चला रहे थे। कारतूसों की परतल्ली उनके
कन्धों पर थी। नन्दराम और अमीर दोनों के निशाने अचूक थे। अमीर ने देखा कि
सलीम पागलों-सा घर में घुसा जा रहा है। वह भी भरी गोली चलाकर उसके पीछे
नन्दराम के घर में घुसा। बीसों वजीरी मारे जा चुके थे। गाँववाले भी घायल
और मृतक हो रहे थे। उधर नन्दराम की मार से वजीरियों ने मोरचा छोड़ दिया
था। सब भागने की धुन में थे। सहसा घर में से चिल्लाहट सुनाई पड़ी।
नन्दराम
भीतर चला गया। उसने देखा; प्रेमा के बाल खुले हैं। उसके हाथ में रक्त से
रञ्जित एक छुरा है। एक वजीरी वहीं घायल पड़ा है। और अमीर सलीम की छाती पर
चढ़ा हुआ कमर से छुरा निकाल रहा है। नन्दराम ने कहा- ”यह क्या है, अमीर?”
“चुप रहो भाई! इस पाजी को
पहले....।”
“ठहरो
अमीर! यह हम लोगों का शरणागत है।” - कहते हुए नन्दराम ने उसका छुरा छीन
लिया; किन्तु दुर्दान्त युवक पठान कटकटा कर बोला- “इस सूअर के हाथ! नहीं
नन्दराम! तुम हट जाओ, नहीं तो मैं तुमको ही गोली मार दूँगा। मेरी बहन,
पड़ोसिन का हाथ पकड़ कर खींच रहा था। इसके हाथ....”
|