कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
नन्दराम
आश्चर्य से देख रहा था। अमीर ने सलीम की कलाई ककड़ी की तरह तोड़ ही दी।
सलीम चिल्लाकर मूर्च्छित हो गया। प्रेमा ने अमीर को पकड़कर खींच लिया।
उसका रणचण्डी-वेश शिथिल हो गया था। सहज नारी-सुलभ दया का आविर्भाव हो रहा
था। नन्दराम और अमीर बाहर आये।
वजीरी चले गये।
एक दिन
टूटे हाथ को सिर से लगाकर जब प्रेमा को सलाम करते हुए सलीम उस गाँव से
विदा हो रहा था, तब प्रेमा को न जाने क्यों उस अभागे पर ममता हो आयी। उसने
कहा- ”सलीम, तुम्हारे घर पर कोई और नहीं है, तो वहाँ जाकर क्या करोगे?
यहीं पड़े रहो।”
सलीम रो रहा था। वह अब भी
हिन्दुस्तान जाने के
लिए इच्छुक नहीं था; परन्तु अमीर ने कड़ककर कहा- ”प्रेमा! इसे जाने दे! इस
गाँव में ऐसे पाजियों का काम नहीं।”
सलीम पेशावर में बहुत
दिनों तक भीख माँगकर खाता और जीता रहा। उसके
‘बुते-काफिर’ वाले गीत को लोग बड़े चाव से सुनते थे।
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