कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
राजपूत
वीर अपने परिवार के साथ उस दुर्ग से निकल पड़े, स्वदेश की ओर चलने के लिए
तैयार हुए। दुर्ग के समीप ही एक पहाड़ी पर उन्होंने अपना डेरा जमाया और
भोजन करने का प्रबन्ध करने लगे।
भारतीय रमणियाँ जब अपने
प्यारे
पुत्रों और पतियों के लिये भोजन प्रस्तुत कर रहीं थीं, तो उनमें उस
अफगान-रमणी के बारे में बहुत बातें हो रही थीं, और वे सब उसे बड़ी घृणा की
दृष्टि से देखने लगीं, क्योंकि उसने एक पति-हत्याकारी को आत्म-समर्पण कर
दिया था। भोजन के उपरान्त जब सब सैनिक विराम करने लगे तब युद्ध की बातें
कहकर अपने चित्त को प्रसन्न करने लगे। थोड़ी देर नहीं बीती थी कि एक ग्रीक
अश्वारोही उनके समीप आता दिखाई पड़ा, जिसे देखकर एक राजपूत युवक उठ खड़ा
हुआ और उसकी प्रतीक्षा करने लगा।
ग्रीक सैनिक उसके समीप
आकर
बोला- शाहंशाह सिकंदर ने तुम लोगों को दया करके अपनी सेना में भरती करने
का विचार किया है। आशा है कि इस सम्वाद से तुम लोग बहुत प्रसन्न होगे।
युवक
बोल उठा- इस दया के लिये हम लोग कृतज्ञ हैं, पर अपने भाइयों पर अत्याचार
करने में ग्रीकों का साथ देने के लिए हम लोग कभी प्रस्तुत नहीं हैं।
ग्रीक- तुम्हें प्रस्तुत
होना चाहिये, क्योंकि शाहंशाह सिकंदर की आज्ञा
है।
युवक-
नहीं महाशय, क्षमा कीजिये। हम लोग आशा करते हैं कि सन्धि के अनुसार हम लोग
अपने देश को शान्तिपूर्वक लौट जायेंगे, इसमें बाधा न डाली जायगी।
ग्रीक- क्या तुम लोग इस
बात पर दृढ़ हो? एक बार और विचार कर उत्तर दो,
क्योंकि उसी उत्तर पर तुम लोगों का जीवन-मरण निर्भर होगा।
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