कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“मीना-आह! कितना
सरल और निर्दोष सौन्दर्य है। मेरे स्वर्ग की सारी माधुरी उसकी भीगी हुई एक
लट के बल खाने में बँधी हुई छटपटा रही है।”- उसने पुकारा- ”मीना!”
मीना पास आकर खड़ी हो गई,
और सब उस युवक को घेरकर एक ओर चल पड़े। केवल
मीना शेख के पास रह गई।
शेख ने कहा- ”मीना, तुम
मेरे स्वर्ग की रत्न हो।”
मीना
काँप रही थी। शेख ने उसका ललाट चूम लिया, और कहा- ”देखो, तुम किसी भी
अतिथि की सेवा करने न जाना। तुम केवल उस द्राक्षा-मण्डप में बैठकर कभी-कभी
गा लिया करो। बैठो, मुझे भी वह अपना गीत सुना दो।”
मीना गाने
लगी। उस गीत का तात्पर्य था- ”मैं एक भटकी हुई बुलबुल हूँ। हे मेरे
अपरिचित कुञ्ज! क्षण-भर मुझे विश्राम करने दोगे? यह मेरा क्रन्दन है-मैं
सच कहती हूँ, यह मेरा रोना है, गाना नहीं। मुझे दम तो लेने दो। आने दो
बसन्त का वह प्रभात-जब संसार गुलाबी रंग में नहाकर अपने यौवन में थिरकने
लगेगा और तब मैं तुम्हें अपनी एक तान सुनाकर केवल एक तान इस रजनी विश्राम
का मूल्य चुकाकर चली जाऊँगी। तब तक अपनी किसी सूखी हुई टूटी डाल पर ही
अन्धकार बिता लेने दो। मैं एक पथ भूली हुई बुलबुल हूँ।”
शेख भूल
गया कि मैं ईश्वरीय संदेह-वाहक हूँ, आचार्य हूँ, और महापुरुष हूँ। वह एक
क्षण के लिए अपने को भी भूल गया। उसे विश्वास हो गया कि बुलबुल तो नहीं
हूँ, पर कोई भूली हुई वस्तु हूँ। क्या हूँ, यह सोचते-सोचते पागल होकर एक
ओर चला गया।
हरियाली से लदा हुआ
ढालुवाँ तट था, बीच में बहता हुआ
वही कलनादी स्रोत यहाँ कुछ गम्भीर हो गया था। उस रमणीय प्रदेश के छोटे-से
आकाश में मदिरा से भरी हुई घटा छा रही थी। लडख़ड़ाते, हाथ-से-हाथ मिलाये,
बहार और गुल ऊपर चढ़ रहे थे। गुल अपने आपे में नहीं है, बहार फिर भी
सावधान है; वह सहारा देकर उसे ऊपर ले आ रही है।
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