कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“ओह!”-कहता हुआ प्रधान
देवपाल सिर पकड़कर बैठ गया। क्षण भर में वह उन्मत्त
हो उठा और दौड़कर गुल के गले से लिपट गया।
सावधान होने पर देवपाल ने
लज्जा को बन्दी करने वाले प्रहरी से कहा- ”उसे
छोड़ दो।”
प्रहरी ने बहार की ओर
देखा। उसका गूढ़ संकेत समझकर वह बोल उठा- ”मुक्त
करने का अधिकार केवल शेख को है।”
देवपाल का क्रोध सीमा का
अतिक्रम कर चुका था, उसने खड्ग चला दिया। प्रहरी
गिरा। उधर बहार 'हत्या! हत्या! चिल्लाती हुई भागी।
संसार
की विभूति जिस समय चरणों में लोटने लगती है, वही समय पहाड़ी दुर्ग के
सिंहासन का था। शेख क्षमता की ऐश्वर्य-मण्डित मूर्ति था। लज्जा, मीना, गुल
और देवपाल बन्दी-वेश में खड़े थे। भयानक प्रहरी दूर-दूर खड़े, पवन की भी
गति जाँच रहे थे। जितना भीषण प्रभाव सम्भव है, वह शेख के उस सभागृह में
था। शेख ने पूछा-”देवपाल तुझे इस धर्म पर विश्वास है कि नहीं?”
“नहीं!”- देवपाल ने उत्तर
दिया।
“तब तुमने हमको धोखा
दिया?”
“नहीं,
चंगेज़ के बन्दी-गृह से छुड़ाने में जब समर-खण्ड में तुम्हारे अनुचरों ने
मेरी सहायता की और मैं तुम्हारे उत्कोच या मूल्य से क्रीत हुआ, तब मुझे
तुम्हारी आज्ञा पूरी करने की स्वभावत: इच्छा हुई। अपने शत्रु चंगेज़ का
ईश्वरीय कोप, चंगेज़ का नाश करने की एक विकट लालसा मन में खेलने लगी, और
मैंने उसकी हत्या की भी। मैं धर्म मानकर कुछ करने गया था, वह समझना भ्रम
है।”
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