कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“और भी सुनोगी पृथ्वी की
दु:ख-गाथा? क्या करोगी सुनकर, तुम यह जानकर क्या
करोगी कि उस उपासिका या विक्रम का फिर क्या हुआ?”
अब मीना से न रहा गया।
उसने युवक के गले से लिपटकर कहा- ”तो....तुम्हीं वह
उपासिका हो? आहा, सच कह दो।”
गुल
की आँखों में अभी नशे का उतार था। उसने अँगड़ाई लेकर एक जँभाई ली, और कहा-
”बड़े आश्चर्य की बात है। क्यों मीना, अब क्या किया जाय?”
अकस्मात् स्वर्ग के भयानक
रक्षियों ने आकर उस युवक को बन्दी कर लिया। मीना
रोने लगी, गुल चुपचाप खड़ा था, बहार खड़ी हँस रही थी।
सहसा पीछे से आते हुए
प्रहरियों के प्रधान ने ललकारा- ”मीना और गुल को
भी।”
अब उस युवक ने घूमकर
देखा; घनी दाढ़ी-मूछों वाले प्रधान की आँखों से आँखें
मिलीं।
युवक चिल्ला उठा-
”देवपाल।”
“कौन! लज्जा? अरे!”
“हाँ, तो देवपाल, इस अपने
पुत्र गुल को भी बन्दी करो, विधर्मी का कर्तव्य
यही आज्ञा देता है।”- लज्जा ने कहा।
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