कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मैकू हँस पड़ा। वह जानता
था कि गोली
युवक होने पर भी सुकुमार और अपने प्रेम की माधुरी में विह्वल, लजीला और
निरीह था। अपने को प्रमाणित करने की चेष्टा उसमें थी ही नहीं। वह आज जो
कुछ उग्र हो गया, इसका कारण है केवल भूरे की प्रतिद्वन्द्विता।
बेला भी वहाँ आ गयी थी।
उसने घृणा से भूरे की ओर देखकर कहा-
‘तो क्या तुम सचमुच बेताल
नहीं बजा रहे थे?’
“
मैं बेताल न बजाऊँगा, तो दूसरा कौन बजायेगा। अब तो तुमको नये यार न मिले
हैं। बेला! तुझको मालूम नहीं तेरा बाप मुझसे तेरा ब्याह ठीक करके मरा है।
इसी बात पर मैंने उसे अपना नैपाली का दोगला टट्टू दे दिया था, जिस पर अब
भी तू चढक़र चलती है।” भूरे का मुँह क्रोध के झाग से भर गया था। वह और भी
कुछ बकता; किन्तु मैकू की डाँट पड़ी। सब चुप हो गये।
उस निर्जन प्रान्त में जब
अन्धकार खुले आकाश के नीचे तारों से खेल रहा था,
तब बेला बैठी कुछ गुनगुना रही थी।
कंजरों
की झोपड़ियों के पास ही पलाश का छोटा-सा जंगल था। उनमें बेला के गीत गूँज
रहे थे। जैसे कमल के पास मधुकर को जाने से कोई रोक नहीं सकता; उसी तरह
गोली भी कब माननेवाला था। आज उसके निरीह हृदय में संघर्ष के कारण
आत्मविश्वास का जन्म हो गया था। अपने प्रेम के लिए, अपने वास्तविक अधिकार
के लिए झगड़ने की शक्ति उत्पन्न हो गयी थी। उसका छुरा कमर में था। हाथ में
बाँसुरी थी। बेला की गुनगुनाहट बन्द होते ही बाँसुरी में गोली उसी तान को
दुहराने लगा। दोनों वन-विहंगम की तरह उस अँधेरे कानन में किलकारने लगे। आज
प्रेम के आवेश ने आवरण हटा दिया था, वे नाचने लगे। आज तारों की क्षीण
ज्योति में हृदय-से-हृदय मिले, पूर्ण आवेग में। आज बेला के जीवन में यौवन
का और गोली के हृदय में पौरुष का प्रथम उन्मेष था।
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