कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
किन्तु भूरा
भी वहाँ आने से नहीं रुका। उसके हाथ में भी भयानक छुरा था। आलिंगन में
आबद्ध बेला ने चीत्कार किया। गोली छटककर दूर जा खड़ा हुआ, किन्तु घाव ओछा
लगा।
बाघ की तरह झपटकर गोली ने
दूसरा वार किया। भूरे सम्हाल न
सका। फिर तीसरा वार चलाना ही चाहता था कि मैकू ने गोली का हाथ पकड़ लिया।
वह नीचे सिर किये खड़ा रहा।
मैकू ने कड़क कर कहा-
”बेला, भूरे से तुझे ब्याह करना ही होगा। यह खेल
अच्छा नहीं।”
उसी
क्षण सारी बातें गोली के मस्तक में छाया-चित्र-सी नाच उठीं। उसने छुरा
धीरे से गिरा दिया। उसका हाथ छूट गया। जब बेला और मैकू भूरे का हाथ पकड़कर
ले चले, तब गोली कहाँ जा रहा है, इसका किसी को ध्यान न रहा।
कंजर-परिवार
में बेला भूरे की स्त्री मानी जाने लगी। बेला ने भी सिर झुका कर इसे
स्वीकार कर लिया। परन्तु उसे पलाश के जंगल में सन्ध्या के समय जाने से कोई
भी नहीं रोक सकता था। उसे जैसे सायंकाल में एक हलका-सा उन्माद हो जाता।
भूरे या मैकू भी उसे वहाँ जाने से रोकने में असमर्थ थे। उसकी दृढ़ता-भरी
आँखों से घोर विरोध नाचने लगता।
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