कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
चाँदनी
निखरी थी। आज अपनी सितारी के साथ नन्दलाल भी गाने लगा था। वह प्रणय-संगीत
था - भावुकता और काल्पनिक प्रेम का सम्भार बड़े वेग से उच्छ्वसित हुआ।
अन्त:करण से दबी हुई तरलवृत्ति, जो विस्मृत स्वप्न के समान हलका प्रकाश
देती थी, आज न जाने क्यों गैरिक निर्झर की तरह उबल पड़ी। जो वस्तु आज तक
मैत्री का सुख-चिह्न थी - जो सरल ह्रदय का उपहार थी - जो उदारता की
कृतज्ञता थी - उसने ज्वाला, लालसापूर्ण प्रेम का रूप धारण किया। संगीत
चलने लगा।
“अरे कौन है.....मुझे
बचाओ.....आह.....”, पवन ने
उपयुक्त दूत की तरह यह सन्देश नन्दलाल के कानों तक पहुँचाया। वह व्याकुल
होकर सितारी छोड़ कर दौड़ा। नदी में फाँद पड़ा। उसके कानों में नलिनी का
सा स्वर सुनाई पड़ा। नदी छोटी थी - खरस्रोता थी। नन्दलाल हाथ मारता हुआ
लहरों को चीर रहा था। उसके बाहु-पाश में एक सुकुमार शरीर आ गया।
चन्द्रकिरणों
और लहरियों को बातचीत करने का एक आधार मिला। लहरी कहने लगी-”अभागे! तू इस
दुखिया नलिनी को बचाने क्यों आया, इसने तो आज अपने समस्त दु:खों का अन्त
कर दिया था।”
किरण- ”क्यों जी, तुम
लोगों ने नन्दलाल को बहुत दिन तक बीच में बहा कर
हल्ला-गुल्ला मचाकर, बचाया था।”
लहरी- ”और तुम्हीं तो
प्रकाश डालकर उसे सचेत कराती रही हो।”
किरण-
”आज तक उस बेचारे को अँधेरे में रक्खा था। केवल आलोक की कल्पना करके वह
अपने आलेख्य पट को उद्भासित कर लेता था। उस पार का योगी सुदूरवर्ती
परदेशी की रम्य स्मृति को शान्त तपोवन का दृश्य था।”
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