कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
लहरी-
”पगली! सुख-स्वप्न के सदृश और आशा में आनन्द के समान मैं बीच में
पड़ी-पड़ी उसके सरल नेह का बहुत दिनों तक सञ्चय करती रही - आन्तरिक
आकर्षणपूर्ण सम्मिलन होने पर भी, वासना-रहित निष्काम सौन्दर्यमय व्यवधान
बन कर मैं दोनों के बीच में बहती थी; किन्तु नन्दलाल इतने में सन्तुष्ट न
हो सका। उछल-कूद कर हाथ चलाकर मुझे भी गँदला कर दिया। उसे बहने, डूबने और
उतराने का आवेश बढ़ गया था।”
किरण- ”हूँ, तब डूबें
बहें।”
पवन
चुपचाप इन बातों को सुन कर नदी के बहाव की ओर सर्राटा मार कर सन्देशा कहने
को भगा। किन्तु वे दूर निकल गये थे। सितारी मूर्च्छना में पड़ी रही।
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