कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मन्नू ने कहा- ”तब मालिक,
मैं क्या करूँ?”
नन्हकू
गँड़ासा कन्धे पर से और ऊँचा करके मलूकी से बोला- ”मलुकिया देखता है, अभी
जा ठाकुर से कह दे, कि बाबू नन्हकूसिंह आज यहीं लगाने के लिए खड़े हैं।
समझकर आवें, लड़के की बारात है।” मलुकिया काँपता हुआ ठाकुर बोधीसिंह के
पास गया। बोधीसिंह और नन्हकू से पाँच वर्ष से सामना नहीं हुआ है। किसी दिन
नाल पर कुछ बातों में ही कहा-सुनी होकर, बीच-बचाव हो गया था। फिर सामना
नहीं हो सका। आज नन्हकू जान पर खेलकर अकेला खड़ा है। बोधीसिंह भी उस आन को
समझते थे। उन्होंने मलूकी से कहा- ”जा बे, कह दे कि हमको क्या मालूम कि
बाबू साहब वहाँ खड़े हैं। जब वह हैं ही, तो दो समधी जाने का क्या काम है।”
बोधीसिंह लौट गये और मलूकी के कन्धे पर तोड़ा लादकर बाजे के आगे
नन्हकूसिंह बारात लेकर गये। ब्याह में जो कुछ लगा, खर्च किया। ब्याह कराकर
तब, दूसरे दिन इसी दूकान तक आकर रुक गये। लड़के को और उसकी बारात को उसके
घर भेज दिया।
मलूकी को भी दस रुपया
मिला था उस दिन। फिर
नन्हकूसिंह की बात सुनकर बैठे रहना और यम को न्योता देना एक ही बात थी।
उसने जाकर दुलारी से कहा- ”हम ठेका लगा रहे हैं, तुम गाओ, तब तक बल्लू
सारंगीवाला पानी पीकर आता है।”
“बाप रे, कोई आफत आयी है
क्या
बाबू साहब? सलाम!”- कहकर दुलारी ने खिडक़ी से मुस्कराकर झाँका था कि
नन्हकूसिंह उसके सलाम का जवाब देकर, दूसरे एक आनेवाले को देखने लगे।
हाथ
में हरौती की पतली-सी छड़ी, आँखों में सुरमा, मुँह में पान, मेंहदी लगी
हुई लाल दाढ़ी, जिसकी सफेद जड़ दिखलाई पड़ रही थी, कुव्वेदार टोपी; छकलिया
अँगरखा और साथ में लैसदार परतवाले दो सिपाही! कोई मौलवी साहब हैं। नन्हकू
हँस पड़ा। नन्हकू की ओर बिना देखे ही मौलवी ने एक सिपाही से कहा- ”जाओ,
दुलारी से कह दो कि आज रेजिडेण्ट साहब की कोठी पर मुजरा करना होगा, अभी
चले, देखो तब तक हम जानअली से कुछ इत्र ले रहे हैं।” सिपाही ऊपर चढ़ रहा
था और मौलवी दूसरी ओर चले थे कि नन्हकू ने ललकारकर कहा- ”दुलारी! हम कब तक
यहाँ बैठे रहें! क्या अभी सरंगिया नहीं आया?”
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