कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
दुलारी ने कहा-
”वाह बाबू साहब! आपही के लिए तो मैं यहाँ आ बैठी हूँ, सुनिए न! आप तो कभी
ऊपर...” मौलवी जल उठा। उसने कड़ककर कहा- ”चोबदार! अभी वह सुअर की बच्ची
उतरी नहीं। जाओ, कोतवाल के पास मेरा नाम लेकर कहो कि मौलवी अलाउद्दीन
कुबरा ने बुलाया है। आकर उसकी मरम्मत करें। देखता हूँ तो जब से नवाबी गयी,
इन काफिरों की मस्ती बढ़ गयी है।”
कुबरा मौलवी! बाप
रे-तमोली
अपनी दूकान सम्हालने लगा। पास ही एक दूकान पर बैठकर ऊँघता हुआ बजाज चौंककर
सिर में चोट खा गया! इसी मौलवी ने तो महाराज चेतसिंह से साढ़े तीन सेर
चींटी के सिर का तेल माँगा था। मौलवी अलाउद्दीन कुबरा! बाज़ार में हलचल मच
गयी। नन्हकूसिंह ने मन्नू से कहा- ”क्यों, चुपचाप बैठोगे नहीं!” दुलारी से
कहा- ”वहीं से बाईजी! इधर-उधर हिलने का काम नहीं। तुम गाओ। हमने ऐसे
घसियारे बहुत-से देखे हैं। अभी कल रमल के पासे फेंककर अधेला-अधेला माँगता
था, आज चला है रोब गाँठने।”
अब कुबरा ने घूमकर उसकी
ओर देखकर कहा- ”कौन है यह पाजी!”
“तुम्हारे
चाचा बाबू नन्हकूसिंह!”- के साथ ही पूरा बनारसी झापड़ पड़ा। कुबरा का सिर
घूम गया। लैस के परतले वाले सिपाही दूसरी ओर भाग चले और मौलवी साहब
चौंधिया कर जानअली की दूकान पर लडख़ड़ाते, गिरते-पड़ते किसी तरह पहुँच
गये।
जानअली ने मौलवी से कहा-
”मौलवी साहब! भला आप भी उस गुण्डे
के मुँह लगने गये। यह तो कहिए कि उसने गँड़ासा नहीं तौल दिया।” कुबरा के
मुँह से बोली नहीं निकल रही थी। उधर दुलारी गा रही थी ” .... विलमि विदेस
रहे ....” गाना पूरा हुआ, कोई आया-गया नहीं। तब नन्हकूसिंह धीरे-धीरे
टहलता हुआ, दूसरी ओर चला गया। थोड़ी देर में एक डोली रेशमी परदे से ढँकी
हुई आयी। साथ में एक चोबदार था। उसने दुलारी को राजमाता पन्ना की आज्ञा
सुनायी।
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