कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
दुलारी चुपचाप डोली पर जा
बैठी। डोली धूल और सन्ध्याकाल के धुएँ से भरी
हुई बनारस की तंग गलियों से होकर शिवालय घाट की ओर चली।
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श्रावण
का अन्तिम सोमवार था। राजमाता पन्ना शिवालय में बैठकर पूजन कर रही थी।
दुलारी बाहर बैठी कुछ अन्य गानेवालियों के साथ भजन गा रही थी। आरती हो
जाने पर, फूलों की अञ्जलि बिखेरकर पन्ना ने भक्तिभाव से देवता के चरणों
में प्रणाम किया। फिर प्रसाद लेकर बाहर आते ही उन्होंने दुलारी को देखा।
उसने खड़ी होकर हाथ जोड़ते हुए कहा- ”मैं पहले ही पहुँच जाती। क्या करूँ,
वह कुबरा मौलवी निगोड़ा आकर रेजिडेण्ट की कोठी पर ले जाने लगा। घण्टों इसी
झंझट में बीत गया, सरकार!”
“कुबरा मौलवी! जहाँ सुनती
हूँ, उसी का
नाम। सुना है कि उसने यहाँ भी आकर कुछ....”- फिर न जाने क्या सोचकर बात
बदलते हुए पन्ना ने कहा- ”हाँ, तब फिर क्या हुआ? तुम कैसे यहाँ आ सकीं?”
“बाबू
नन्हकूसिंह उधर से आ गये।” मैंने कहा- ”सरकार की पूजा पर मुझे भजन गाने को
जाना है। और यह जाने नहीं दे रहा है। उन्होंने मौलवी को ऐसा झापड़ लगाया
कि उसकी हेकड़ी भूल गयी। और तब जाकर मुझे किसी तरह यहाँ आने की छुट्टी
मिली।”
“कौन बाबू नन्हकूसिंह!”
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