कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
राजमाता
न जाने क्यों इस अद्भुत व्यक्ति को समझने के लिए चञ्चल हो उठी थीं। तब भी
उन्होंने दुलारी को आगे कुछ न कहने के लिए तीखी दृष्टि से देखा। वह चुप हो
गयी। पहले पहर की शहनाई बजने लगी। दुलारी छुट्टी माँगकर डोली पर बैठ गयी।
तब गेंदा ने कहा- ”सरकार! आजकल नगर की दशा बड़ी बुरी है। दिन दहाड़े लोग
लूट लिए जाते हैं। सैकड़ों जगह नाला पर जुए में लोग अपना सर्वस्व गँवाते
हैं। बच्चे फुसलाये जाते हैं। गलियों में लाठियाँ और छुरा चलने के लिए
टेढ़ी भौंहे कारण बन जाती हैं। उधर रेजीडेण्ट साहब से महाराजा की अनबन चल
रही है।” राजमाता चुप रहीं।
दूसरे दिन राजा चेतसिंह
के पास
रेजिडेण्ट मार्कहेम की चिठ्ठी आयी, जिसमें नगर की दुव्र्यवस्था की कड़ी
आलोचना थी। डाकुओं और गुण्डों को पकड़ने के लिए, उन पर कड़ा नियन्त्रण
रखने की सम्मति भी थी। कुबरा मौलवी वाली घटना का भी उल्लेख था। उधर
हेंस्टिग्स के आने की भी सूचना थी। शिवालयघाट और रामनगर में हलचल मच गयी!
कोतवाल हिम्मतसिंह, पागल की तरह, जिसके हाथ में लाठी, लोहाँगी, गड़ाँसा,
बिछुआ और करौली देखते, उसी को पकड़ने लगे।
एक दिन नन्हकूसिंह
सुम्भा के नाले के संगम पर, ऊँचे-से टीले की घनी हरियाली में अपने चुने
हुए साथियों के साथ दूधिया छान रहे थे। गंगा में, उनकी पतली डोंगी बड़ की
जटा से बँधी थी। कथकों का गाना हो रहा था। चार उलाँकी इक्के कसे-कसाये
खड़े थे।
नन्हकूसिंह ने अकस्मात्
कहा- ”मलूकी!” गाना जमता नहीं
है। उलाँकी पर बैठकर जाओ, दुलारी को बुला लाओ।” मलूकी वहाँ मजीरा बजा रहा
था। दौड़कर इक्के पर जा बैठा। आज नन्हकूसिंह का मन उखड़ा था। बूटी कई बार
छानने पर भी नशा नहीं। एक घण्टे में दुलारी सामने आ गयी। उसने मुस्कराकर
कहा- ”क्या हुक्म है बाबू साहब?”
“दुलारी! आज गाना सुनने
का मन कर रहा है।”
|