कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“मेरे सिपाही यहाँ कहाँ
हैं, साहब?”- मनिहारसिंह ने हँसकर कहा। बाहर
कोलाहल बढऩे लगा।
चेतराम ने कहा- ”पहले
चेतसिंह को कैद कीजिए।”
“कौन
ऐसी हिम्मत करता है?” कड़ककर कहते हुए बाबू मनिहारसिंह ने तलवार खींच ली।
अभी बात पूरी न हो सकी थी कि कुबरा मौलवी वहाँ पहुँचा! यहाँ मौलवी साहब की
कलम नहीं चल सकती थी, और न ये बाहर ही जा सकते थे। उन्होंने कहा- ”देखते
क्या हो चेतराम!”
चेतराम ने राजा के ऊपर
हाथ रखा ही थी कि नन्हकू
के सधे हुए हाथ ने उसकी भुजा उड़ा दी। इस्टाकर आगे बढ़े, मौलवी साहब
चिल्लाने लगे। नन्हकूसिंह ने देखते-देखते इस्टाकर और उसके कई साथियों को
धराशायी किया। फिर मौलवी साहब कैसे बचते!
नन्हकूसिंह ने कहा-
”क्यों, उस दिन के झापड़ ने तुमको समझाया नहीं? पाजी!”- कहकर ऐसा साफ़
जनेवा मारा कि कुबरा ढेर हो गया। कुछ ही क्षणों में यह भीषण घटना हो गयी,
जिसके लिए अभी कोई प्रस्तुत न था।
नन्हकूसिंह ने ललकार कर
चेतसिंह से कहा- ”आप क्या देखते हैं? उतरिये डोंगी पर!”-उसके घावों से
रक्त के फुहारे छूट रहे थे। उधर फाटक से तिलंगे भीतर आने लगे थे। चेतसिंह
ने खिडक़ी से उतरते हुए देखा कि बीसों तिलंगों की संगीनों में वह अविचल
खड़ा होकर तलवार चला रहा है। नन्हकू के चट्टान-सदृश शरीर से गैरिक की तरह
रक्त की धारा बह रही है। गुण्डे का एक-एक अंग कटकर वहीं गिरने लगा। वह
काशी का गुंडा था!
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