कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पन्ना के मुँह से हलकी-सी
एक साँस निकल रह गयी। उसने पहचान लिया। इतने
वर्षों के बाद! वही नन्हकूसिंह।
मनिहारसिंह ने पूछा- ”तुम
क्या कर सकते हो?”
“मै
मर सकता हूँ! पहले महारानी को डोंगी पर बिठाइए। नीचे दूसरी डोंगी पर अच्छे
मल्लाह हैं। फिर बात कीजिए।”- मनिहारसिंह ने देखा, जनानी ड्योढ़ी का दरोगा
राज की एक डोंगी पर चार मल्लाहों के साथ खिडक़ी से नाव सटाकर प्रतीक्षा
में है। उन्होंने पन्ना से कहा- ”चलिए, मैं साथ चलता हूँ।”
“और...”-
चेतसिंह को देखकर, पुत्रवत्सला ने संकेत से एक प्रश्न किया, उसका उत्तर
किसी के पास न था। मनिहारसिंह ने कहा- ”तब मैं यहीं?”
नन्हकू ने
हँसकर कहा- ”मेरे मालिक, आप नाव पर बैठें। जब तक राजा भी नाव पर न बैठ
जायँगे, तब तक सत्रह गोली खाकर भी नन्हकूसिंह जीवित रहने की प्रतिज्ञा
करता है।”
पन्ना ने नन्हकू को देखा।
एक क्षण के लिए चारों आँखे
मिली, जिनमें जन्म-जन्म का विश्वास ज्योति की तरह जल रहा था। फाटक
बलपूर्वक खोला जा रहा था। नन्हकू ने उन्मत्त होकर कहा- ”मालिक! जल्दी
कीजिए।”
दूसरे क्षण पन्ना डोंगी
पर थी और नन्हकूसिंह फाटक पर
इस्टाकर के साथ। चेतराम ने आकर एक चिठ्ठी मनिहारसिंह को हाथ में दी।
लेफ्टिनेण्ट ने कहा- ”आप के आदमी गड़बड़ मचा रहे हैं। अब मै अपने
सिपाहियों को गोली चलाने से नहीं रोक सकता।”
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