कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बालक ने दोनों हाथों से
पान-पात्र जीनत की ओर बढ़ाया। बेगम ने उसे लेकर
पान कर लिया।
नहीं
कह सकते कि उस शर्बत ने बेगम को कुछ तरी पहुँचाई या गर्मी; किन्तु
हृदय-स्पन्दन अवश्य कुछ बढ़ गया। शाहआलम ने झुककर कहा- एक और!
बालक
विचित्र गति से पीछे हटा और थोड़ी देर में दूसरा प्याला लेकर उपस्थित हुआ।
पान-पात्र निश्शेष कर शाहआलम ने हाथ कुछ और फैला दिया, और बालक की ओर
इंगित करके बोले- कादिर, जरा उँगलियाँ तो बुला दे।
बालक अदब से सामने बैठ
गया और उनकी उँगलियों को हाथ में लेकर बुलाने लगा।
मालूम
होता है कि जीनत को शर्बत ने कुछ ज्यादा गर्मी पहुँचाई। वह छोटे बजरे के
मेहराब में से झुककर यमुना-जल छूने लगी। कलेजे के नीचे एक मखमली तकिया
मसली जाने लगी, या न मालूम वही कामिनी के वक्षस्थल को पीडऩ करने लगी।
शाहआलम
की उँगलियाँ, उस कोमल बाल-रवि-कर-समान स्पर्श से, कलियों की तरह चटकने
लगीं। बालक की निर्निमेष दृष्टि आकाश की ओर थी। अकस्मात् बादशाह ने कहा-
मीना! ख्वाजा-सरा से कह देना कि इस कादिर को अपनी खास तालीम में रखें, और
उसके सुपुर्द कर देना।
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