कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
शाहआलम- हाँ जी, सिन्धिया
से कह दिया जायगा कि लाचारी से उसको वजारत दी
गयी। तुम थे नहीं, उसने जबर्दस्ती वह काम अपने हाथ में लिया।
मंसूर- और इससे मुसलमान
रियाया भी हुजूर से खुश हो जायगी। तो, उसे हुक्म
आने का भेज दिया जाय?
दिल्ली
के दुर्ग पर गुलाम कादिर का पूर्ण अधिकार हो गया है। बादशाह के
कर्मचारियों से सब काम छीन लिया गया है। रुहेलों का किले पर पहरा है।
अत्याचारी गुलाम महलों की सब चीजों को लूट रहा है। बेचारी बेगमें अपमान के
डर से पिशाच रुहेलों के हाथ, अपने हाथ से अपने आभूषण उतारकर दे रही हैं।
पाशविक अत्याचार की मात्रा अब भी पूर्ण नहीं हुई। दीवाने-खास में सिंहासन
पर बादशाह बैठे हैं। रुहेलों के साथ गुलाम कादिर उसे घेरकर खड़ा है।
शाहआलम- गुलाम कादिर, अब
बस कर! मेरे हाल पर रहम कर, सब कुछ तूने कर लिया।
अब मुझे क्यों नाहक परेशान करता है?
गुलाम- अच्छा इसी में है
कि अपना छिपा खजाना बता दो।
एक रुहेला- हाँ,हाँ, हम
लोगों के लिये भी तो कुछ चाहिये।
शाहआलम- कादिर! मेरे पास
कुछ नहीं है। क्यों मुझे तकलीफ देता है?
कादिर- मालूम होता है,
सीधी उँगली से घी नहीं निकलेगा।
शाहआलम- मैंने तुझे इस
लायक इसलिये बनाया कि तू मेरी इस तरह बेइज्जती करे?
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