कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
युवती मुँह ढाँपकर रो रही
है,
और युवक रक्ताक्त छूरा लिये, घृणा की दृष्टि से खड़े हुए, हीरा की ओर देख
रहा है। विमल चन्द्रिका में चित्र की तरह वे दिखाई दे रहे हैं। वृद्ध को
जब चंदा ने देखा, तो और वेग से रोने लगी। उस दृश्य को देखते ही वृद्ध
कोल-पति सब बात समझ गया, और रामू के समीप जाकर छूरा उसके हाथ से ले लिया,
और आज्ञा के स्वर में कहा- तुम दोनों हीरा को उठाकर नदी के समीप ले चलो।
इतना
कहकर वृद्ध उन सबों के साथ आकर नदी-तट पर जल के समीप खड़ा हो गया। रामू और
चंदा दोनों ने मिलकर उसके घाव को धोया और हीरा के मुँह पर छींटा दिया,
जिससे उसकी मूर्च्छा दूर हुई। तब वृद्ध ने सब बातें हीरा से पूछीं; पूछ
लेने पर रामू से कहा- क्यों, यह सब ठीक है?
रामू ने कहा- सब सत्य है।
वृद्ध-
तो तुम अब चंदा के योग्य नहीं हो, और यह छूरा भी-जिसे हमने तुम्हें दिया
था। तुम्हारे योग्य नहीं है। तुम शीघ्र ही हमारे जंगल से चले जाओ, नहीं तो
तुम्हारा हाल महाराज से कह देंगे, और उसका क्या परिणाम होगा सो तुम स्वयं
समझ सकते हो। (हीरा की ओर देखकर) बेटा! तुम्हारा घाव शीघ्र अच्छा हो
जायगा, घबड़ाना नहीं, चंदा तुम्हारी ही होगी।
यह सुनकर चंदा और
हीरा का मुख प्रसन्नता से चमकने लगा, पर हीरा ने लेटे-ही-लेटे हाथ जोड़कर
कहा- पिता! एक बात कहनी है, यदि आपकी आज्ञा हो।
वृद्ध- हम समझ गये, बेटा!
रामू विश्वासघाती है।
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