कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
युवक- तुम इससे बहुत
अच्छी तरह लड़ रहे हो।
रामू- मारता क्यों नहीं?
युवक- इसी तरह शायद हीरा
से भी लड़ाई हुई थी, क्या तुम नहीं लड़ सकते?
रामू- कौन, चंदा! तुम हो?
आह, शीघ्र ही मारो, नहीं तो अब यह सबल हो रहा
है।
चंदा
ने कहा- हाँ, लो मैं मारती हूँ, इसी छुरे से हमारे सामने तुमने हीरा को
मारा था, यह वही छुरा है, यह तुझे दु:ख से निश्चय ही छुड़ावेगा - इतना
कहकर चंदा ने रामू की बगल में छुरा उतार दिया। वह छटपटाया। इतने ही में
शेर को मौका मिला, वह भी रामू पर टूट पड़ा और उसका इति कर आप भी वहीं गिर
पड़ा।
चंदा ने अपना छुरा निकाल
लिया, और उसको चाँदनी में रंगा
हुआ देखने लगी, फिर खिलखिलाकर हँसी और कहा, -'दरद दिल काहि सुनाऊँ
प्यारे!' फिर हँसकर कहा- हीरा! तुम देखते होगे, पर अब तो यह छुरा ही दिल
की दाह सुनेगा। इतना कहकर अपनी छाती में उसे भोंक लिया और उसी जगह गिर गई,
और कहने लगी...... हीरा...... हम...... तुमसे तुमसे...... मिले ही......
चन्द्रमा अपने मन्द
प्रकाश में यह सब देख रहा था।
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