कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
अकस्मात् गोली की आवाज ने
उसे
चौंका दिया। गाने के समय जो उसका मुख उद्वेग और करुणा से पूर्ण दिखाई
पड़ता था, वह घृणा और क्रोध से रंजित हो गया, और वह उठकर पुच्छमर्दिता
सिंहनी के समान तनकर खड़ी हो गई, और धीरे से कहा- यही समय है। ज्ञात होता
है, राजा इस समय शिकार खेलने पुन: आ गये हैं - बस, वह अपने वस्त्र को ठीक
करके कोल-बालक बन गई, और कमर में से एक चमचमाता हुआ छुरा निकालकर चूमा। वह
चाँदनी में चमकने लगा। फिर वह कहने लगी- यद्यपि तुमने हीरा का रक्तपात कर
लिया है, लेकिन पिता ने रामू से तुम्हें ले लिया है। अब तुम हमारे हाथ में
हो, तुम्हें आज रामू का भी खून पीना होगा।
इतना कहकर वह गोली के
शब्द की ओर लक्ष्य करके चली। देखा कि तहखाने में राजा साहब बैठे हैं। शेर
को गोली लग चुकी है, और वह भाग गया है, उसका पता नहीं लग रहा है, रामू
सरदार है, अतएव उसको खोजने के लिए आज्ञा हुई, वह शीघ्र ही सन्नद्ध हुआ।
राजा ने कहा- कोई साथी लेते जाओ।
पहले तो उसने अस्वीकार
किया, पर
जब एक कोल युवक स्वयं साथ चलने को तैयार हुआ, तो वह नहीं भी न कर सका, और
सीधे-जिधर शेर गया था, उसी ओर चला। कोल-बालक भी उसके पीछे हैं। वहाँ घाव
से व्याकुल शेर चिंघ्घाड़ रहा है, इसने जाते ही ललकारा। उसने तत्काल ही
निकलकर वार किया। रामू कम साहसी नहीं था, उसने उसके खुले मुँह में निर्भीक
होकर बन्दूक की नाल डाल दी; पर उसके जरा-सा मुँह घुमा लेने से गोली चमड़ा
छेदकर पार निकल गई, और शेर ने क्रुद्ध होकर दाँत से बंदूक की नाल दबा ली।
अब दोनों एक दूसरे को ढकेलने लगे; पर कोल-बालक चुपचाप खड़ा है। रामू ने
कहा- मार, अब देखता क्या है?
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