लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> क्रोध

क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813
आईएसबीएन :9781613016190

Like this Hindi book 0

मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन


रुद्राष्टक के रूप में बड़ी प्रसिद्ध है। स्तुति करने के बाद उन्होंने भगवान् शंकर से कहा कि महाराज! आप तो कृपालु हैं पर आपने शाप दे दिया, दण्ड दे दिया। पर आपका क्रोध भी कल्याणकारी होता है। अत: -

एहि कर होइ परम कल्याना।
सोइ करहुँ अब कृपानिधाना।। 7/108/1


मैं यह तो नहीं कहूँगा कि आप इसे शाप मुक्त कर दीजिये, पर ऐसी कृपा अवश्य कर दीजिये कि जिससे थोड़े ही दिनों में फल भोगकर यह कल्याण की प्राप्ति कर ले। यही हुआ भी! भगवान् शंकर का क्रोध परम कल्याणकारी बनकर, मानो वरदान बन गया।

शंकर जी गुरुजी की इस भावना से प्रसन्न हो गये उन्होंने कहा इसे अजगर तो बनना पड़ेगा और हजार जन्म भी लेने होगे। पर जन्म और मृत्यु में जो दुःख होता है वह इसे नहीं होगा, दूसरी बात भगवान् शंकर ने कही कि व्यक्ति को पूर्वजन्म की बात भूल जाती है पर इसे प्रत्येक जन्म का स्मरण बना रहेगा।

वैसे तो पूर्वजन्म की बात भूल जाना, यह भी ईश्वर की एक कृपा ही है, क्योंकि एक ही जन्म के शत्रुओं और मित्रों की याद से ही व्यक्ति इतना दुखी रहता है, यदि अनेकों जन्मों के इन सम्बन्धों की स्मृति बनी रह जाये तो व्यक्ति का जीना दूभर ही हो जायेगा। इस दृष्टि से विस्मरण ही श्रेष्ठ है। पर उन स्मृतियों का यदि वर्तमान जीवन में सदुपयोग हो सके, तब तो ऐसी स्मृतियाँ भी अच्छी हैं। याद रह जाने के कारण यदि व्यक्ति में राग या द्वेष आ जाये तो याद रह जाना बुरा है पर यदि यह स्मृति, वर्तमान में निरन्तर हमें सावधान करती रहे कि इस जन्म में वैसी भूलें न होने पायें तब तो निःसंदेह यह हितप्रद है। भगवान् शंकर का शाप विवेकजन्य शाप का ही स्वरूप है और इसलिए उसका फल एक वरदान की भाँति ही दिखायी देता है। यदि कोई किसी को शाप देते हुए यह कहे कि 'तुम्हें अग्नि में प्रवेश तो करना पड़ेगा, पर तुम न तो जलोगे और न ही तुम्हें कष्ट होगा,' तो इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है कि कोई आग में घुसकर भी ज्यों-का-त्यों बाहर निकल आये? यह शाप है कि एक सिद्धि है? शंकरजी का क्रोध भी वैद्य की दवा की तरह ही है जो व्यक्ति को स्वस्थ बनाकर, उसका कल्याण ही करती है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को चाहिये कि वह क्रोध को भगवान् शंकर की तरह ही अपने जीवन में स्वीकार करे। पर इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक क्रोधी व्यक्ति अपने आप को शंकर ही मानने लगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book