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क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813
आईएसबीएन :9781613016190

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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन


गोस्वामीजी लिखते हैं कि ये बुरे स्वभाव वाले राजागण जब धनुष तोड़ने के लिये जाते थे, तो चलते समय, कोई गणेशजी से, तो कोई विष्णुजी से, प्रार्थना अवश्य करते थे। वे कहते थे - हमसे धनुष तुड़वा दीजिये। पर उनकी प्रार्थना प्रतिफलित होती हुई दिखायी नहीं देती थी, क्योंकि धनुष तो किसी से टूट नहीं पा रहा था। वे बेचारे निराश होकर लौटते, तो उस समय अपने-अपने इष्ट देव से फिर एक दूसरी प्रार्थना करते थे कि 'आपने हमसे तो धनुष तुड़वाया नहीं, पर इतनी कृपा तो अवश्य कीजिये कि अब वह धनुष किसी से भी न टूटने पाये!'' पर जब शिव-धनुष भगवान् राम के हाथों टूट गया, तो वे सब-के-सब राजा लोग अपने-अपने इष्ट देवों से नाराज हो गये और लगे उलाहना देने - आपने हमसे तो तुड़वाया नहीं, यही राजकुमार बचा था तुड़वाने के लिये? आपने तो हमारी नाक ही कटवा दी, अब हम नहीं करेंगे आपकी पूजा! पर जब परशुरामजी ने यह कहा कि 'हम धनुष तोड़ने वाले का सिर काट डालेंगे' तो उन कुटिल राजाओं ने प्रसन्न होकर अपने-अपने इष्ट देवों को धन्यवाद दिया - महाराज! आपने बड़ी कृपा की जो हमसे धनुष नहीं तुड़वाया, क्योंकि यदि आपने तुड़वा दिया होता तो अब सिर ही कट जाता।''

पर भगवान् राम की मनःस्थिति इन सबसे सर्वथा भिन्न है, न उनमें हर्ष है और न ही विषाद है। पर जब उन्होंने देखा कि सभी सभासद भयभीत हैं और जानकीजी के नेत्रों में भी व्याकुलता है तो वे परशुरामजी को उत्तर देने के लिये प्रस्तुत हो जाते हैं। गोस्वामीजी कहते हैं कि-

सभय विलोके लोग सब जानि जानकी भीरु।
हदयँ न हरषु विषादु कछु बोले श्री रघुबीरु।। 1/270


तब प्रभु ने वाणी के संयम का ऐसा बढ़िया बाँध बनाया जो किसी प्रकार से तोड़ा न जा सके। भगवान् राम परशुरामजी से कहते-

नाथ संभु धनु भंजनिहारा।
होइहि केउ एक दास तुम्हारा।। 1/270/1


महाराज! शंकरजी का धनुष तोड़नेवाला आपका कोई एक दास होगा। प्रभु का तात्पर्य है कि धनुष तोड़नेवाला शंकरजी का विरोधी होगा, आप ऐसी कल्पना भी मत कीजिये। आप शंकरभक्त हैं, तोड़नेवाला जब आपका दास होगा, तो फिर वह भगवान् शंकर का विरोधी कहाँ से हो गया?

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