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क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813
आईएसबीएन :9781613016190

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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन


भगवान् राम परशुरामजी से उस प्रकार भी वार्तालाप कर सकते थे जैसा कि क्रोध में बहुधा लोग किया करते हैं। उत्तर देते समय एक क्रोधित व्यक्ति यही तो कहता है कि तुमने समझ क्या रखा है? मैं अभी तुम्हारी खबर लेता हूँ। सामनेवाला व्यक्ति भी उत्तेजित होकर यही कहता है कि अच्छा दिखाओ! फिर मैं भी तुम्हें मजा चखाऊंगा! प्रभु उस शैली में नहीं बोलते। वे पूछते हैं- महाराज! आपने धनुष के टूटने को इतना बुरा क्यों मान लिया? तोड़ने वाला तो आपका दास ही होगा! भगवान् राम यह नहीं कहते हैं कि मैंने तोड़ा है। प्रभु की वाणी को सुनकर परशुरामजी को यही लगता है कि यह बालक बड़ा शीलवान् है और तोड़नेवाले को बचाने के लिये ही ऐसा बोल रहा है। पर भगवान् राम का तात्पर्य है कि महाराज! पहले यह तो विचार कर लेना चाहिये कि तोड़ने वाला क्रोध का पात्र है भी या नहीं, और तब क्रोध नहीं करना चाहिये। और भगवान् राम जो वाक्य कहते हैं कि महाराज --

होइहि केउ एक दास तुम्हारा। 1/270/1


तोड़नेवाला तो यहाँ है ही नहीं, अब तो आपके सामने आपका एक दास खड़ा है यह जीवन का विशिष्टतम सूत्र है।

भगवान् राम का संकेत है कि आप जब तक किसी काम को कर रहे हैं, बस! उसी समय तक अपने आप को कर्ता स्वीकार कीजिये और उस काम के संपन्न होते ही यह भुला दीजिये कि आप उस काम के करने वाले हैं। काम पूरा हो जाने के बाद कर्तापन का भी त्याग कर देना चाहिये, यही बात प्रभु अपने इस वाक्य से बताना चाहते हैं। समाज में भी हमें यह दिखायी देता है, कि जैसे एक न्यायाधीश, न्यायालय की कुर्सी पर आसीन रहते तक न्यायाधीश बना रहे तब तो कोई बात नहीं, पर वह न्यायालय से वापस आकर घर में, पत्नी और बच्चों के बीच भी यदि न्यायाधीश की तरह ही व्यवहार करेगा, तब तो घर में झगड़ा हुए बिना नहीं रहेगा। उस व्यक्ति को घर में आकर यह तो भूलना ही पड़ेगा कि मैं न्यायाधीश हूँ। घर में तो उसे यही याद रखना होगा कि मैं पिता हूँ, पति हूँ या पुत्र हूँ।

भगवान् राम यही बताना चाहते हैं कि धनुष टूट गया तो उसके साथ उसका तोड़ने वाला भी चला गया, अब तो आपके समक्ष, आपकी जो आज्ञा हो, उसे पालन करनेवाला एक सेवक खड़ा है। पर परशुरामजी भगवान् राम की भाषा समझ नहीं पाते वे कहते हैं - तुम शीलवान् लगते हो, पर मैं तुम्हारी बातों से प्रभावित होने वाला नहीं हूँ। मैं तुम्हें यह बता देना चाहता हूँ कि धनुष तोड़नेवाला तो सहस्त्रार्जुन की भाँति ही मेरा शत्रु है और यदि वह अलग होकर खड़ा नहीं हो जाता तो मैं सबको मार दूँगा। भगवान् राम तो सबसे अलग ही खड़े थे, पर परशुरामजी की समस्या यही है कि वे समझ नहीं पाते कि भगवान् राम ने ही धनुष तोड़ा है। इसलिये अब श्री लक्ष्मण सामने आते हैं।

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