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धर्म एवं दर्शन >> प्रसाद

प्रसाद

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9821
आईएसबीएन :9781613016213

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प्रसाद का तात्विक विवेचन


अज्ञान के अन्धकार को दूर करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है ही, पर उसमें साज और सुर को मिलाने की भी आवश्यकता है। यह कौन है?

बरसा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास।। दोहावली, 25

सावन और भादों इन दो महीनों की वर्षा ऋतु मानी जाती है। राम शब्द में रा सावन है और म भादों है और इन्हीं दो अक्षरों में भक्ति की वर्षा होती है। जब श्रीराम जनकपुर आते हैं तब धनुष-यज्ञ होता है और इसके पश्चात् सीता और राम का विवाह होता है। धनुषयज्ञ से पहले ही अहल्या के उद्धार का प्रसंग आता है। अहल्या की कथा और जनकपुर की कथा एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। अहल्या बड़ी पतिव्रता हैं जो गौतम की निरन्तर सेवा करती हैं, किन्तु एक क्षण ऐसा आ गया कि जब गौतम का वेश बनाकर इन्द्र आया और अहल्या ने उसे स्वीकार कर लिया और जब गौतम आये तो पत्थर हो जाने का शाप दे दिया।

बुद्धि है अहल्या और धर्म हैं गौतम। बुद्धि को चाहिए कि वह निरन्तर धर्म के पीछे चले, धर्म का अनुगमन करे और धर्म के प्रति निष्ठावान् रहे। ज्ञान के सन्दर्भ में 'रामायण' में उत्तरकाण्ड में कहा गया है कि-

सोउ मुनि ग्याननिधान मृगनयनी बिथु मुख निरखि।
बिबस होइ हरिजान नारि बिष्णु माया प्रगट।। 7/115

संसार को मिथ्या कहना ही ज्ञान है क्या? जो इतनी धर्मात्मा अहल्या है वह भी गिर गयी। इन्द्र कौन है? जो स्वर्ग का अधिपति है, जो संसार में सर्वश्रेष्ठ पुण्यात्मा होता है, वही इन्द्रपद प्राप्त करता है। यदि कोई व्यक्ति एक सौ अश्वमेध यज्ञ पूरा कर ले तो उसे इन्द्रपद मिलता है।

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