धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत प्रेममूर्ति भरतरामकिंकर जी महाराज
|
|
भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन
अपने प्यारे की चरण-पनहीं में उसके लिए वह दिव्य सुख है, जो मुक्ति में भी नहीं। चारों फलों का तिरस्कार करके, अपमानित होकर भी वह इन्हें नहीं छोड़ सकता। प्रभु के यहाँ को शरणागतों की भीड़ लगी रहती है। पर यह अनोखा भक्त तो उनकी ‘पनहीं’ की शरण में जा रहा है। आप चौंकेगे – कहेंगे ‘पनहीं’! वहाँ कहाँ? श्री भरत तो स्वयं “लखन राम सिय बिनु पग पनहीं” कह चुके हैं। फिर “मोरे सरन रामहि की पनहीं” का क्या अर्थ है?
इस अनोखे प्रेमी का आदर्श है ‘पनहीं’। उसमें उसे गुण ही गुण दिखाई देते हैं। यह सदा प्रभु-चरणों में पड़ी रहने वाली तपस्विनी है। इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। इसकी साधना का केवल एक ही लक्ष्य है – राघवेन्द्र के सुकुमार चरण-कमलों की रक्षा करना – उनके शिरीष पुष्पाधिक कोमल चरणों में कहीं कोई काँटा न लग जाए। बस इतने के लिए वह हर समय कंकरीला, पथरीली, कण्टकाकीर्ण राह में चलने को उत्सुक रहती है। इतने पर भी वह आज प्रभु द्वारा परित्यक्त है। जब इतनी साधनामयी होकर भी वह मानापमान से परे है, तब वे यदि मेरा परित्याग करते हैं, तो मैं भी उन परित्यक्त उपानहों का ही आश्रय ग्रहण कर लूँगा। हमारे लिए वही आराध्य है। उसको प्राप्त कर लेना ही मेरा लक्ष्य है। उस जैसा बन जाऊँ यही कामना है। केवल प्यारे की कष्टों से रक्षा के लिए यह जीवन हो। इसी भावना से वे “मोरे सरन रामहिं की पनहीं” कहते हैं। उसके पहले “जौ परिहरहिं मलिन मन जानी” से भी इसी भावना की पुष्टि होती है। अभिप्राय यह है कि प्रभु भले ही त्याग कर दें, पर पनहीं नहीं त्याग करेगी। क्योंकि उसे स्वयं भी परित्यक्ता के दुख का अनुभव है। यदि वे ग्रहण करते हैं, तब भी मैं उपानह की ही तरह बनना चाहूँगा, और त्याग में भी उपानह ही। उपानह का और दूसरा उपयोग हो ही क्या सकता है? चरण उसे धारण कर ले, सेविका मानकर, तो वह धन्य हो गई। पर यदि त्याग भी कर दें, तो क्या वह अन्यत्र कहीं जा सकेगी? कौसल्या अम्बा का भी प्रभु की ‘पनहीं’ से बड़ा अनुराग है। उसके साथ संवेदना है। और उसके गुणों के प्रति श्रद्धा साथ ही व्यथा–
बार बार उर नैनहि लावति प्रभु जी की ललित पनहियाँ।
राघवेन्द्र की तरह वे उस “पनहीं” को भी हृदय से लगा लेती है। वास्तव में “पनहीं” की शरणागति ही प्रभु की सच्ची शरणागति है। श्री भरत जैसे भावुकों को छोड़कर अन्यों के लिए यह सूझ असम्भव थी।
|