जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
ब्रह्मचर्य-1
अब ब्रह्मचर्य के विषय में विचार करने का समय आ गया हैं। एक पत्नी व्रत का तो विवाह के समय से ही मेरे हृदय में स्थान था। पत्नी के प्रति वफादारी मेरे सत्यव्रत का अंग था। पर अपनी स्त्री के साथ भी ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये, इसका स्पष्ट बोध मुझे दक्षिण अफ्रीका में ही हुआ। किस प्रसंग से अथवा किस पुस्तक के प्रभाव से यह विचार मेरे मन में उत्पन्न हुआ, यो तो आज मुझे स्पष्ट याद नहीं हैं कि इसमे रायचंदभाई के प्रभाव की प्रधानता थी।
उनके साथ के संवाद का मुझे स्मरण हैं। एक बार मैं ग्लैडस्टन के प्रति मिसेज ग्लैडस्टन के प्रेम की प्रशंसा कर रहा था। मैंने कहीं पढ़ा था कि पार्लियामेंट की सभा में भी मिसेज ग्लैडस्टन अपने पति को चाय बनाकर पिलाती थी। इस वस्तु का पालन इस नियमबद्ध दम्पती के जीवन का एक नियम बन गया था। मैंने कवि को यह प्रसंग पढ़कर सुनाया और उसके सन्दर्भ में दम्पती प्रेम की स्तुति की। रायचन्दभाई बोले, 'इसमे तुम्हे महत्त्व की कौन सी बात मालूम होती हैं? मिसेज ग्लैडस्टन का पत्नीत्व या उनका सेवाभाव? यदि वे ग्लैडस्टन की बहन होती तो? अथवा उनकी वफादार नौकरानी होती और उतने ही प्रेम से चाय देती तो? ऐसी बहनों, ऐसी नौकरानियों के दृष्टांत क्या हमे आज नहीं मिलते? और नारी-जाति के बदले ऐसा प्रेम यदि तुमने नर-जाति में देखा, तो क्या तुम्हे सानन्द आश्चर्य न होता? तुम मेरे इस कथन पर विचार करना। '
रायचन्द भाई स्वयं विवाहित थे। याद पड़ता है कि उस समय तो मुझे उनके ये वचन कठोर लगे थे, पर इन वचनो ने मुझे चुम्बक की तरह पकड़ लिया। मुझे लगा कि पुरुष सेवक की ऐसी स्वामीभक्ति का मूल्य पत्नी की पति-निष्ठा के मूल्य से हजार गुना अधिक है। पति-पत्नी में ऐक्य होता है, इसलिए उनमें परस्पर प्रेम हो तो कोई आश्चर्य नहीं। मालिक और नौकर के बीच वैसा प्रेम प्रयत्न-पूर्वक विकसित करना होता है। दिन-पर-दिन कवि के वचनो का बल मेरी दृष्टि में बढ़ता प्रतीत हुआ।
मैंने अपने-आप से पूछा, मुझे अपनी पत्नी के साथ कैसा सम्बन्ध रखना चाहिये। पत्नी को विषय-भोग का वाहन बनाने में पत्नी के प्रति वफादारी कहाँ रहती हैं? जब तक मैं विषय-वासना के अधीन रहता हूँ, तब तक तो मेरी वफादारी का मूल्य साधारण ही माना जायगा। यहाँ मुझे यह कहना ही चाहिये कि हमारे आपस के सम्बन्ध में पत्नी की ओर से कभी आक्रमण हुआ ही नहीं। इस दृष्टि से जब मैं चाहता तभी मेरे लिए ब्रह्मचर्य का पालन सुलभ था। मेरी अशक्ति अथवा आशक्ति ही मुझे रोक रही थी।
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