जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पर मुझे 'रौलेट एक्ट' के विरुद्ध जूझना था। यह मोह मुझे छोड़ नहीं रहा था। इससे जीने की इच्छा बढ़ी और जिसे मैं अपने जीवन का महान प्रयोग मानता हूँ उसकी गति रुक गयी।
खान-पान के साथ आत्मा का संबंध नहीं है। वह न खाती है, न पीती है। जो पेट में जाता है, वह नहीं, बल्कि जो वचन अन्दर से निकलते है वे हानि-लाभ पहुँचाने वाले होते है। -- इत्यादि दलीलों से मैं परिचित हूँ। इनमे तथ्यांश है। पर बिना दलील किये मैं यहाँ अपना यह ढृढ निश्चय ही प्रकट किये देता हूँ कि जो मनुष्य ईश्वर से डरकर चलना चाहता हैं, जो ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करने की इच्छा रखता हैं, ऐसे साधक और मुमुक्षु के लिए अपने आहार का चुनाव --त्याग और स्वीकार -- उतना ही आवश्यक है, जितना कि विचार और वाणी का चुनाव -- त्याग और स्वीकार -- आवश्यक हैं।
पर जिस विषय में मैं स्वयं गिरा हूँ उसके बारे में मैं न केवल दूसरो को अपने सहारे चलने की सलाह नहीं दूँगा, बल्कि ऐसा करने से रोकूँगा। अतएव आरोग्य-विषयक मेरी पुस्तक के सहारे प्रयोग करने वाले सब भाई-बहनों को मैं सावधान करना चाहता हूँ। दूध का त्याग पूरी तरह लाभप्रद प्रतीत हो अथवा वैद्य-डॉक्टर उसे छोड़ने की सलाह दें, तभी वे उसकों छोड़े। सिर्फ मेरी पुस्तक के भरोसे वे दूध का त्याग न करे। यहीं का मेरा अनुभव अब तक तो मुझे यही बतलाया है कि जिसकी जठराग्नि मंद हो गयी हैं और जिसने बिछौना पकड़ लिया हैं, उसके लिए दूध जैसी खुराक हलकी और पौषक खुराक हैं ही नहीं। अतएव उक्त पुस्तकों के पाठको से मेरी बिनती और सिफारिश है कि उसमें दूध की मर्यादा सूचित की गयी हैं उस पर चलने की वे जिद न करें।
इस प्रकरणों पढ़ने वाले कोई वैद्य, डॉक्टर, हकीम या दूसरे अनुभवी दूध के बदले में किसी उतनी ही पोषक किन्तु सुपाच्य वनस्पति को अपने अध्ययन के आधार पर नहीं, बल्कि अनुभव के आधार पर जानते हो, तो उसकी जानकारी देकर मुझे उपकृत करे।
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