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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस प्रकार फेरफार जब एक बार शुरू हो जाते है, तो फिर वे रुक नहीं पाते। फीनिक्स का रसोईघर स्वावलम्बी बन गया था, यहीं नहीं बल्कि उसमें रसोई भी बहुत सादी बनती थी। मसालो का त्याग किया गया था। अतएव भात, दाल, साग तथा गेहूँ के पदार्थ भी भाप के द्वारा पका लिये जाते थे। बंगाली खुराक में सुधार करने के विचार से उस प्रकार का एक रसोईघर शुरू किया था। उसमें एक-दो अध्यापक और कुछ विद्यार्थी सम्मिलित हुए थे। ऐसे ही प्रयोगों में से सर्वसाधारण रसोईघर को स्वावलम्बी बनाने का प्रयोग शुरू किया जा सका था।

पर आखिर कुछ कारणो से यह प्रयोग बन्द हो गया। मेरा विश्वास है कि इस जगद्-विख्यात संस्था ने थोडे समय के लिए भी इस प्रयोग को अपनाकर कुछ खोया नहीं और उससे प्राप्त अनेक अनुभव उसके लिए उपयोगी सिद्ध हुए थे।

मेरा विचार शांतिनिकेतन में कुछ समय रहने का था। किन्तु विधाता मुझे जबरदस्ती घसीटकर ले गया। मैं मुश्किल से वहाँ एक हफ्ता रहा होऊँगा कि इतने में पूना से गोखले के अवसान का तार मिला। शांतिनिकेतन शोक में डूब गया। सब मेरे पास समवेदना प्रकट करने आये। मन्दिर में विशेष सभा की गयी। यह गम्भीर दृश्य अपूर्व था। मैं उसी दिन पूना के लिए रवाना हुआ। पत्नी और मगनलाल गाँधी को मैंने अपने साथ लिया, बाकी सब शांतिनिकेतन में रहे।

बर्दवान तक एंड्रूज मेरे साथ आये थे। उन्होंने मुझ से पूछा, 'क्या आप को ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान में आपके लिए सत्याग्रह करने का अवसर हैं? और अगर ऐसा लगता हो तो कब आयेगा, इसकी कोई कल्पना आपको है?'

मैंने जवाब दिया, 'इसका उत्तर देना कठिन हैं। अभी एक वर्ष तक तो मुझे कुछ करना ही नहीं हैं। गोखले ने मुझ से प्रतिज्ञा करवायी है कि मुझे एक वर्ष तक देश में भ्रमण करना हैं, किसी सार्वजनिक प्रश्न पर अपना विचार न तो बनाना है, न प्रकट करना हैं। मैं इस प्रतिज्ञा का अक्षरशः पालन करूँगा। बाद में भी मुझे किसी प्रश्न पर कुछ करने की जरूरत होगी तभी मैं कहूँगा। इसलिए मैं नहीं समझता कि पाँच वर्ष तक सत्याग्रह करने का कोई अवसर आयेगा।'

यहाँ यह कहना अप्रस्तुत न होगा कि 'हिन्द स्वराज्य' में मैंने डो विचार व्यक्त किये है, गोखले उनका मजाक उड़ाते थे और कहते थे, 'आप एक वर्ष हिन्दुस्तान में रहकर देखेंगे, तो आपके विचार अपने आप ठिकाने आ जायेंगे।'

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