जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इस जुलूस को वे मुसलमान भाई हमे एक मजिस्द में ले गये। वहाँ श्रीमति सरोजिनीदेवी से और मुझ से भाषण कराये। वहाँ श्री विट्ठलदास जेराजाणी ने स्वदेशी और हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतिज्ञा लिवाने का सुझाव रखा। मैंने ऐसी उतावली में प्रतिज्ञा कराने से इनकार किया औऱ जितना हो रहा था उतने से संतोष करने की सलाह दी। की हुई प्रतिज्ञा फिर तोड़ी नहीं जा सकती। स्वदेशी का अर्थ हमें समझना चाहिये। हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतिज्ञा की जिम्मेदार का ख्याल हमे रहना चाहिये -- आदि बाते कही और यह सूचना की कि प्रतिज्ञा लेने का जिसका विचार हो, वह चाहे तो अगले दिन सवेरे चौपाटी के मैंदान पर पहुँच जाय।
बम्बई की हड़ताल सम्पूर्ण थी।
यहाँ कानून की सविनय अवज्ञा की तैयारी कर रखी थी। जिनकी अवज्ञा की जा सके ऐसी दो-तीन चीजे थी। जो कानून रद्द किये जाने लायक थे और जिनकी अवज्ञा सब सरलता से कर सकते थे, उनमें से एक का ही उपयोग करने का निश्चय था। नमक-कर का कानून सबको अप्रिय था। उस कर को रद्द कराने के लिए बहुत कोशिशें हो रही थी। अतएव मैंने सुझाव यह रखा कि सब लोग बिना परवाने के अपने घर में नमक बनाये। दूसरा सुझाव सरकार द्वारा जब्त की हुई पुस्तके छापने और बेचने का था। ऐसी दो पुस्तके मेरी ही थी, 'हिन्द स्वराज' और 'सर्वोदय'। इन पुस्तको को छपाना और बेचना सबसे सरल सविनय अवज्ञा मालूम हुई। इसलिए ये पुस्तके छपायी गयी और शाम को उपवास से छूटने के बाद और चौपाटी की विराट सभा के विसर्जित होने के बाद इन्हें बेचने का प्रबंध किया गया।
शाम को कई स्वयंसेवक ये पुस्तके लेकर बेचने निकल पड़े। एक मोटर में मैं निकला और एक में श्रीमति सरोजिनी नायडू निकली। जितनी प्रतियाँ छपायी गयी थी उतनी सब बिक गयी। इनको जो कीमत वसूल होती, वह लड़ाई के काम में ही खर्च की जाने वाली थी। एक प्रति का मूल्य चार आना रखा गया था। पर मेरे हाथ पर अथवा सरोजिनीदेवी के हाथ पर शायद ही किसी ने चार आने रखे होगे। अपनी जेब में जो था सो सब देकर किताबे खरीदने वाले बहुतेरे निकल आये। कोई कोई दस और पाँच के नोट भी देते थे। मुझे स्मरण है कि एक प्रति के लिए 50 रुपये के नोट भी मिले थे। लोगों को समझा दिया गया था कि खरीदनेवाले के लिए भी जेल का खतरा है। लेकिन क्षण भर के लिए लोगों ने जेल का भय छोड़ दिया था।
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