जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पलवल स्टेशन आने के पहले ही पुलिस अधिकारी ने मेरे हाथ पर आदेश-पत्र रखा। आदेश इस प्रकार का था : 'आपके पंजाब में प्रवेश करने से अशान्ति बढ़ने का डर है, अतएव आप पंजाव की सीमा में प्रवेश न करे।' आदेश-पत्र देकर पुलिस में उतर जाने को कहा। मैंने उतरने से इनकार किया और कहा, 'मैं अशान्ति बढाने नहीं बल्कि निमंत्रण पाकर अशान्ति घटाने के लिए जाना चाहता हूँ। इसलिए खेद है कि मुझसे इस आदेश का पालन नहीं हो सकेगा।'
पलवल आया। महादेव मेरे साथ थे। उनसे मैंने दिल्ली जाकर श्रद्धानन्दजी को खबर देने और लोगों को शान्त रखने के लिए कहा। मैंने महादेव से यह भी कहा कि वे लोगों को बता दे कि सरकारी आदेश का अनादर करने के कारण जो सजा होगी उसे भोगने का मैंने निश्चय कर लिया है, साथ ही लोगों को समझाने के लिए कहा कि मुझे सजा होने पर भी उनके शान्त रहने में ही हमारी जीत है।
मुझे पलवल स्टेशन पर उतार लिया गया और पुलिस के हवाले किया गया। फिर दिल्ली से आनेवाली किसी ट्रेन के तीसरे दर्जे के डिब्बे में मुझे बैठाया गया और साथ में पुलिस का दल भी बैठा। मथुरा पहुँचने पर मुझे पुलिस की बारक में ले गये। मेरा क्या होगा और मुझे कहाँ ले जाना है, सो कोई पुलिस अधिकारी मुझे बता न सका। सुबह 4 बजे मुझे जगाया और बम्बई जानेवाली मालगाड़ी में बैठा दिया गया। दोपहर को मुझे सवाई माधोपुर स्टेशन पर उतारा गया। वहाँ बम्बई की डाकगाड़ी में लाहौर से इन्स्पेटर बोरिंग आये। उन्होंने मेरा चार्ज लिया।
अब मुझे पहले दर्जे में बैठाया गया। साथ में साहब भी बैठे। अभी तक मैं एक साधारण कैदी था, अब 'जेंटलमैन कैदी' माना जाने लगा। साहब ने सर माइकल ओडवायर का बखान शुरू किया। उन्हें मेरे विरुद्ध तो कोई शिकायत है ही नहीं, किन्तु मेरे पंजाब जाने से उन्हें अशान्ति का पूरा भय है, आदि बाते कह कर मुझे स्वेच्छा से लौट जाने और फिर से पंजाब की सीमा पार न करने का अनुरोध किया। मैंने उनसे कह दिया कि मुझसे इस आज्ञा का पालन नहीं हो सकेगा और मैं स्वेच्छा से वापस जाने को तैयार नहीं। अतएव साहब में लाचार होकर कानूनी कार्रवाई करने की बात कहीं। मैंने पूछा, 'लेकिन यह तो कहिये कि आप मेरा क्या करना चाहते है?' वे बोले, 'मुझे पता नहीं है। मैं दूसरे आदेश की राह देख रहा हूँ। अभी तो मैं आपको बम्बई ले जा रहा हूँ।'
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