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विजय, विवेक और विभूति

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9827
आईएसबीएन :9781613016152

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विजय, विवेक और विभूति का तात्विक विवेचन


देवताओं ने कहा था कि आपने रावण को मारकर हमारी रक्षा की है, परन्तु सुजान शंकरजी ने कहा कि आप मेरी रक्षा कीजिए! संकेत यह है कि लीला वाला रावण मारा गया। रावण का कितना बड़ा पुतला और कैसी सरलता से प्रतिवर्ष जलता है, परन्तु क्या सचमुच रावण मर गया? शंकरजी कहते हैं कि –

मामभिरक्षय    रघुकुलनायक।
घृतबर चाप रुचिर कर सायक।। 6/114 छंद

आपके हाथ में धनुष है, बाण है और आप रक्षा करने वाले हैं। मेरी रक्षा कीजिए! इस रावण के मर जाने के बाद भी हमारे और संसार के सब जीवों के अन्तःकरण में मोह के रूप में जब तक रावण विद्यमान है, तब तक सच्चे अर्थों में रावण की मृत्यु की कोई सार्थकता नहीं है। जब व्यक्ति के अन्तःकरण से मोह का नाश हो जाय तब समझना चाहिए कि सच्चे अर्थों में रावण मारा गया और आप शंकरजी की स्तुति में यही पायेंगे –

मोह  महाघन  पटल  प्रभंजन।
संसय विपिन अनल सुर रंजन।।
काम  क्रोध  मद गज पंचानन।
बसहु  निरंतर जन मन कानन।। 6/114 छंद 2,4

भगवान् शंकरजी इन सबसे अपनी रक्षा करना चाहते हैं। लंकाकाण्ड का फलादेश पढ़िए –

समर बिजय रघुवीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहिं देहिं भगवान्।। 6/121 क

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