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विजय, विवेक और विभूति

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9827
आईएसबीएन :9781613016152

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विजय, विवेक और विभूति का तात्विक विवेचन


विजय मिलेगी। यदि कोई आपका मुकदमा चल रहा हो तो लंकाकाण्ड का पाठ करने से क्या विजय मिल जायेगी? गोस्वामीजी का एक ग्रन्थ है रामाज्ञा प्रश्न, उसमें उन्होंने एक बड़ा विचित्र दोहा लिखा है कि यदि आप शत्रुघ्नजी का स्मरण करें तो तीन स्थानों पर आपको विजय मिलेगी –

सुमिरि सत्रु सूदन चरन सगुन सुमंगल मानि।
परपुर बाद बिबाद जय जूझ जुआ जय जानि।। रामाज्ञा प्रश्न 2/4/2

विवाद में, युद्ध में और जुए में यदि जीतना हो तो शत्रुघ्नजी के चरणों का स्मरण कीजिए। जुआरियों के लिए यह एक महामन्त्र मिल गया, परन्तु आप इस दोहे को इसी अर्थ में लेते हैं तो आप गोस्वामीजी के प्रति न्याय नहीं कर रहे हैं। क्या शत्रुघ्नजी का नाम स्मरण करने से यह आवश्यक है कि जुआ खेलने वाला जुए में जीत ही जाए? यदि हार जाए तो शत्रुघ्नजी की महिमा किसी काम की नहीं। महाभारत में भी यह प्रश्न उठाया गया। धर्मात्मा युधिष्ठिर को इतना कष्ट क्यों उठाना पड़ा? इसके मूल में सबसे बड़ा कारण जो बना वह था उनका जुए के प्रति व्यसन। सारे संघर्ष का कारण द्यूत ही था। क्या आप यह मानते हैं कि यदि कोई धर्मात्मा हो तो उसको जुए में जीतना ही चाहिए? शकुनि जीत गया और धर्मात्मा परास्त हो गये। इसको आप केवल साधारण अर्थों में न लें। शत्रुघ्नजी के स्मरण से क्या जुए में जीत मिलती है? इसे आप अयोध्याकाण्ड के प्रसंग से जोड़िये। चित्रकूट में श्रीराम और लक्ष्मण एक ओर हैं और श्रीभरत और शत्रुघ्नजी दूसरी ओर। गुरु वसिष्ठ ने भगवान् श्रीराम से कहा था कि भरत जो बात कह रहे हैं उस पर विचार कीजिए और मैं भी जो कह रहा हूँ, उसे मानना ठीक नहीं है, संकेत के रूप में क्यों?

आरत कहहिं बिचारि न काऊ।
सूझ जुआरिहि  आपन  दाऊ।। 2/257/1

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