धर्म एवं दर्शन >> कामना और वासना की मर्यादा कामना और वासना की मर्यादाश्रीराम शर्मा आचार्य
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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।
इस व्यवस्था में लंबी अवधि की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। पर व्यक्तित्व के निखार का यही रास्ता है। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पहले आप उस काम को करने की दृढ़ इच्छा मन में कर लें। पीछे सारी मानसिक शक्तियों को उसमें लगा दें तो सफलता की संभावना बढ़ जाती है। दृढ़ इच्छा शक्ति से किए गए कार्यों को विघ्न-बाधाएँ भी देर तक रोक नहीं पातीं। संसार में जिन लोगों ने भी बड़ी इच्छाओं की पूर्ति की, उन्होंने पहले उसकी पृष्ठभूमि को अधिक सुदृढ़ बनाया। पीछे उन कार्यों में जुट पड़े। तीव्र विरोध के बावजूद भी सिकंदर झेलम पार कर भारत विजय दृढ़ मनस्विता के बल पर ही कर सका। ताजमहल आज भी इस धरती पर विद्यमान है।
जीवन लक्ष्य की प्राप्ति भी ऐसे ही महान कार्यों की श्रेणी में आती है। दूसरों से सिद्धियों-सामर्थ्यों की बात सुनकर आवेश में आकर आत्म साक्षात्कार की इच्छा कर लेना हर किसी के लिए आसान है। पर पीछे देर तक उस पर चलते रहना, तीव्र विरोध और अपने स्वयं के मानसिक झंझावातों को सहते हुए इच्छा पूर्ति की लंबे समय तक प्रतीक्षा की लगन हममें बनी रहे, तो परमात्मा की प्राप्ति के भागीदार बन सकना भी असंभव न होगा।
इसके विपरीत यदि हमारी इच्छा शक्ति ही निर्बल, क्षुद्र और कमजोर बनी रहे, तो हमें अभीष्ट लाभ कैसे मिल सकेगा? अधूरे मन से ही कार्य करते रहे तो लाभ के स्थान पर हानि हो जाना संभव है। इच्छाएँ जब तक बुद्धि द्वारा परिमार्जित होकर संकल्प का रूप नहीं ले लेतीं, तब तक उनकी पूर्ति संदिग्ध ही बनी रहेगी। इच्छा शक्ति यदि प्रखर न हुई, तो वह लगन और तत्परता कहाँ बन पाएगी, जो उसकी सिद्धि के लिए आवश्यक है।
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