कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
|
0 |
ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
कमला के पूछने पर हजारी प्रसाद ने अपनी सारी कहानी बता दी और चार लाल देने के लिए धन्यवाद भी दिया। वह वहां पर करीब बीस-पच्चीस दिन रुका। भाभी कमला ने देवर हजारी प्रसाद व देवरानी मृगनयनी की खूब खातिरदारी की फिर कुछ धन देकर हजारी प्रसाद ने भाभी कमला और भाई अर्थात लीलामणी से विदा ली। उनके बच्चों को भी आशीर्वाद दिया और वहां से चल पड़े फिर उसने गाड़ीवान को आदेश दिया कि अब रथ को मेरी बहन की ससुराल खडगपुर की ओर ले चलिए। कुछ ही दिनों में वे खडगपुर पहुंच गये और उसी कुएं पर रुके जहां पर हजारी प्रसाद जाते समय रुका था। कुएं की पनिहारियों ने पूछा तो उसने बताया कि- इस गांव में मेरी बहन राधा है।
गांव की पनिहारियों ने राधा को बताया तो वह सजधज कर और आरती की थाली हाथ में लेकर अन्य औरतों को साथ लेकर मंगलगीत गाती हुई आई। पहले भाई की आरती उतारी फिर भाई के गले लगी और भाभी के गले लगी। फिर भाई से कहने लगी- चलो भाई अब घर चलो तुम्हारे जीजाजी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।
यह सुनकर हजारी प्रसाद वहां गया जहां उसने प्याज और रोटी धरती में दबाई थी। वहां धरती खोदी तो उसमें रोटी तो खराब हो चुकी थी और प्याज वहां उगी हुई थी उन्हें उखाड़कर अपनी बहन को दिखाते हुए कहने लगा- जब मेरे पास कुछ नहीं था तो आप मेरे लिए सूखी रोटी और ये प्याज लेकर आई थीं और आज जब मेरे पास सबकुछ है तो आप मिठाई और पकवान लेकर आई हैं। मैं नहीं खाता, आप इन्हें वापिस ले जाईये।
मगर मृगनयनी ने कहा- स्वामी यदि इससे गलती हुई तो क्या हुआ ऐसा तो होता ही है गरीबी में कोई साथ नहीं देता। अब आप इन्हें माफ कर दें। देखिए आपकी बहन राधा कैसे अश्रु बिखेर कर पश्चाताप कर रही है।
|