कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
हजारी प्रसाद ने उसे माफ कर दिया और उसके साथ उसके घर गया वहां कुछ दिन रहने के बाद अपने घर गांव की तरफ रवाना हुआ। पिछली बातों को सोच-सोच कर उसका मन बार-बार भर आता था। वह सोच रहा था कि आज वह तेरह वर्ष बाद अपने गांव जा रहा है। उसके मां-बाप कैसे होंगे। उसका गांव बदल गया होगा। उधर जब उसके मां-बाप को पता लगा कि उनका बेटा हजारी आ रहा है तो वो कहने लगे हमारा बेटा वास्तव में आ गया है। यदि वो हमारी आँखों पर हाथ रख देगा तो हमारी आँखों की रोशनी वापिस आ जाएगी। जब हजारी प्रसाद अपने घर पहुंचा तो उसके मां-बाप एक जगह अंधे हुए बैठे थे।
जैसे ही मां के समीप पहुंचा तो उसके स्तनों में दूध उतर आया। उसने अपने बेटे को छाती से लगा लिया। हजारी प्रसाद अपने पिता लखपती दास के गले से लगकर खूब रोया फिर उसके पिता सेठ लखपती दास ने अपने बेटे हजारी प्रसाद से कहा- बेटा मुझे माफ कर दो। मैंने धन के लालच में आकर अपने बेटे को खो दिया था।
तब हजारी प्रसाद ने मां मिश्री देवी और पिता की आँखों पर हाथ फेरा तो उनकी आँखों की रोशनी वापिस लौट आई फिर सेठ लखपती ने अपना सारा कारोबार हजारी प्रसाद को सौंप दिया और कामकाज से मुक्ति पा ली। अब सारा परिवार हंसी-खुशी से रहने लगा।
एक दिन हजारी प्रसाद ने अपने पिता सेठ लखपती को हुण्डी वाली सारी बात बताई तो सेठ लखपती अपने आंसू ना रोक सका। सौ रुपये की हुण्डी ने लखपती को करोड़पति बना दिया। लेकिन उसे दौलत नहीं आज दौलत से प्यारा अपना बेटा और पुत्रवधु प्राप्त कर लिये।
अब भी सेठ लखपती हुण्डी की बात याद आते ही रो पड़ता और सोचता- दौलत से बढ़कर भी कुछ है, और वो है रिश्ते-नाते। मैं हमेशा दौलत के पीछे भागता रहा। कभी कोई अच्छा काम नहीं किया। मुझसे अच्छा तो मेरा बेटा रहा। जिसने सौदा भी किया और उसमें मुनाफा भी कमाया। ऐसा सौदा मैंने नहीं किया। मुझे तो घाटा ही घाटा रहा।
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