कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
|
0 |
ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
अब तो शेर को देखकर बुढ़िया थर-थर कांपने लगी, मगर हिम्मत से काम लेते हुए वह शेर से भी कहने लगी-
ना भाई, जीजी के जाऊं, मोटी-झोटी होके आऊं, जब खाईए।
शेर ने सोचा अब तो बुढ़िया के शरीर की जो खाल है वो भी हड्डियों से चिपकी हुई है सो खाने में इतना मजा नहीं आयेगा। इसे मोटा होकर आने दो फिर खाने में अलग ही मजा आयेगा। उसने बुढ़िया से कहा- ठीक है तुम जा सकती हो और हां जल्दी आना मैं यहीं पर तुम्हारा इंतजार करूंगा
बुढ़िया अपनी बहन के यहां पहुंच गई। बहन ने अपनी उस बुढ़िया की खूब आवभगत की और खूब सेवा की। क्योंकि वह बुढ़िया उसकी छोटी बहन थी। वह बुढ़िया अपनी बड़ी बहन के यहां करीब दो महीने रुकी। बड़ी बहन अपनी छोटी बहन को खूब खाने को देती मगर वह मोटी न होती। एक दिन बड़ी बहन कहने लगी- अरी बहन मैं तुझे अच्छे-से-अच्छा खाने को देती हूं। अच्छा पिलाती हूं। फिर भी तू है कि सूखती ही जा रही है। क्या बात है। मुझे बता। तूझे किस चीज की फिक्र है ? तू आई थी उससे भी कहीं ज्यादा बोदी होती जा रही है।
यह सुनकर वह बुढ़िया अपनी बड़ी बहन से कहने लगी- बहन जब मैं आ रही थी तो रास्ते में मुझे कई भयानक जंगली जानवर मिले। जिन्होंने मुझे खाना चाहा। मैं उनसे यह कहकर आई हूं कि जब मैं वापिस आऊं तभी मुझे खाना। अब वो जानवर मुझे नहीं छोड़ेंगे।
यह सुनकर उसकी बहन बोली- बस इतनी सी बात हैं। तू घबरा मत। मैं तेरे लिए खाती के यहां से एक मंदला घड़वाकर दूंगी। जिसके अन्दर बैठने पर वे जीव तेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।
अब तो वह बुढ़िया बहुत खुश हुई। कुछ दिन बाद उसने अपनी बहन से विदाई ली और मन्दले के अन्दर बैठकर अपने घर की ओर चलने लगी। अब रास्ते में वह वन पड़ता था वहां पर शेर बुढ़िया के इंतजार में खड़ा था। जब उसने देखा कि बुढ़िया आ रही है तो वह बहुत खुश हुआ। जब वह बुढ़िया नजदीक पहुँची तो वह शेर कहने लगा कि बुढ़िया अब तो मैं तुम्हें खाऊँगा ही।
|