लोगों की राय

कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832
आईएसबीएन :9781613016046

Like this Hindi book 0

ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

वह कीड़ी बोली- मैं भी आपके साथ चलूं शायद कहीं आपकी मदद कर सकूं। तब काना कचरा कहने लगा ठीक है बहन तुम भी चलो।

आगे चलने पर उसे रास्ते में आँधी (तूफान) मिली। आँधी बोली- मामा-मामा आप सभी कहां जा रहे हो।

फिर काने कचरे ने जवाब दिया- माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं।

आँधी बोली- मैं भी आपके साथ बैठ लेऊँ।

तब काने कचरे कहा कि- हां बहन तुम भी बैठ लो। शायद आपकी भी कहीं पर जरूरत पड़े।

अब आँधी को बिठाकर वे सभी आगे चलने लगे। रास्ते में उन्हें एक नदी मिली। नदी ने काने कचरे से कहा- मामाजी आप सभी कहां जा रहे हैं, यह सुनकर फिर काने कचरे ने जवाब दिया - माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं।

नदी ने कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूं। शायद मेरी भी तुमको आवश्यकता पड़े।

काना कचरा कहने लगा- हां-हां बहन तुम भी बैठ सकती हो। इस प्रकार से सभी इकट्ठे हो कर चल पड़े।

कुछ ही देर में वे सभी राजा के दरबार के निकट पहुँच गए। जब उन सैनिकों ने काने कचरे को देखा तो वे दौड़े-दौड़े राजा के पास गए और सभी हाल बयान कर दिया। राजा ने हुक्म दिया कि काने कचरे को भेड़-बकरियों के रिवाड़े में आज रात छोड़ दिया जाए। कोई बकरी तो उसे सींग या पैर से कुचल ही देगी।

इस प्रकार से काने कचरे को भेड़-बकरियों के रिवाड़े में कैद कर दिया। काने कचरे ने बिल्ली से कहा कि चल दिखा तू अपना कमाल।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book