कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
हिरण और गीदड़
बहुत पुरानी बात है। एक जंगल था जिसके अन्दर गीदड़ और हिरण दो मित्र रहते थे। एक दिन गीदड़ ने अपने मित्र हिरण से कहा कि क्यों न भईया हिरण आज गांव में चला जाए। आज शाम को हम गांव में चलेंगे। वहां पर हम जिस भी दुकान में घुसेंगे वहां से जो सामान लेकर आऐंगे। उसे अपनी गुफा के अन्दर बांट कर खाऐंगे।
हिरण भी उसकी बात से सहमत हो गया और शाम होते ही दोनों घर से निकल पड़े। हिरण और गीदड़ दोनों बातें करते जा रहे थे कि कुत्त्तों ने आकर उन दोनों को बिछुड़ा दिया। बड़ी मुश्किल से जान बचाकर गीदड़ एक नमक के गोदाम में और हिरण एक बनिये की दुकान में घुस गया। सुबह होने पर जब नमक वाले गोदाम का मालिक आया तो उसने गीदड़ को देख क्रोध से उसको दो-तीन फटकार दिए। बेचारा भागता-भागता एक मुट्ठी नमक अपने कान में भरकर चला गया।
इधर जब बनिये ने सुबह दुकान खोली तो उसके अन्दर हिरण को देख कर घबरा गया। उसने बड़े साहस से पूछा- मेरी दुकान के अन्दर कौन है।
तब हिरण ने अन्दर से कहा-
एक सींग से खाँऊ,
एक सींग से पहाड़ फोङूं,
दूसरे सींग से बनिये तेरे पेट को फोङूं।
यह सुनकर तो बनिये का पेट ही घराब हो गया, उसे पतले दस्त आने लगे। इतनी ही देर में वहां पर भीड़ जमा हो गई। सेठानी भी वहां पर आ गई।
अब सेठानी कहने लगी कि हे महाराज! आप कौन हैं, और क्या चाहते हैं। आपको जिसमें खुशी है हम वही करेंगे।
हिरण ने फिर अन्दर से जवाब दिया-
एक सींग से खाँऊ,
एक सींग से पहाड़ फोङूं,
दूसरे सींग से बनिये तेरे पेट को फोङूं।
यदि आप मुझे बाहर निकालना चाहते हो तो आप एक काम करें। मेरे बाल-बाल में मोती पिरो दें। मेरे सींगों को रंग से रंग देना, मेरे पैरों में कड़ी, पाती, नेवरी पहनाना तथा जितनी भी आपकी दुकान में मिठाई है। सबकी थोड़ी-थोड़ी मिठाई बांधकर मेरे सिर पर रख दो। नहीं तो आज मैं सेठ का पेट फोड़कर ही जाऊँगा।
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