कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
सैनिकों ने राजा के कहने के अनुसार वैसा ही किया। अब राजा के सामने काने कचरे को प्रस्तुत किया गया। ज्यों ही राजा ने काने कचरे को काटने के लिए तलवार उठाई। काने कचरे ने मन-ही-मन नदी से कहा- चल बहन नदी अब आपकी बारी है दिखाओ जरा अपना कमाल दिखाओ।
नदी ने पलक झपकते ही राजा के महल में छाती तक पानी भर दिया कुछ ही देर में राजा की ठुड्डी तक पानी भर आया। अब राजा अपनी रानियों सहित काने कचरे से विनती करने लगा कि हे काने कचरे मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें दो बैलों की बजाय चार बैल गाड़ी सहित दूंगा। अपना आधा राज-पाट और अपनी कन्या की डोली भी तुझे ही दूंगा। चारों बैलगाडि़यों को धन से लादकर दूंगा। परन्तु किसी तरह से इस बाढ़ को रोको। हम यदि मर गए तो तुम्हें कुछ हाथ नहीं लगेगा।
अब तो काने कचरे ने सभी कुछ शांत किया, और विधि-विधान के अनुसार राजा ने अपनी बेटी की शादी काने कचरे के साथ कर दी। काना कचरा कुछ दिनों तक तो वहां पर रुका। फिर अपने घर के लिए राजा से विदा ली और चल पड़ा। कुछ दिनों में वह अपने गांव के निकट पहुँच गया।
उधर शाम को जाट और जाटणी सोच रहे थे कि वह काना कचरा तो हमें बेवकूफ बनाकर हमारे बैल भी ले गया। अब इन खेतों को कैसे जोतेंगे। तभी बाहर से आवाज आई- मां दरवाजा खोलिए, आपकी बहू आई है।
काने कचरे की आवाज सुनकर तो जाटणी ने झट से दरवाजा खोला और देखा तो वह अचरज करने लगी और सामने बहू और उसके द्वारा लाए हुए दहेज को देखकर तो वह फूली ही नहीं समाई। जाट ने तथा जाटणी ने काने कचरे को छाती से लगा लिया तथा दोनों की आँखों से स्नेह की धारा प्रवाहित हो चली।
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