कहानी संग्रह >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकान्त
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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कठपुतलियां
मंच पर कलाकार अपने दोनों
हाथों में लकड़ी के गुड्डा-गुड्डी लिए है। पीली रोशनी में उसके हाव-भाव
नजर आ रहे हैं। गुडि़या को वह भाव विह्वल होकर देख रहा है। मन मन में कुछ
बुदबुदा रहा है-फिर अचानक चीखकर, दहाड़ें मारकर रोने लगता है-’हाय री मेरी
धन्नो...’ बेहोश होकर गिर जाता है... (विछोह का संगीत)
होश में आने पर उठकर कुछ बुदबुदाता है... ‘तब तो लगता था कठपुतलियां गाती है, धन्नो के जाने के बाद पता लगा ये तो बेजान लकड़ी की पुतलियां है, धन्नो गाती थी, तो इनके शरीर में हरकत होती थी। वह गाती, मैं उंगलियों पर कठपुतलियां नचाता तो तालियों के शोर से सब जीवंत हो जाता।
वह उठ खड़ा होता है। टहलने लगता है... ‘ गाओ एक बार गाओ मेरी धन्नो... एक बार गाओ मेरी कठपुतलियों... नहीं गाती, नहीं नाचती बेदर्द... धोखेबाज...।’ जोर से दोनों कठपुतलियों को फेंक देता है।
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